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उ॒त स्या नो॒ दिवा॑ म॒तिरदि॑तिरू॒त्या ग॑मत् । सा शंता॑ति॒ मय॑स्कर॒दप॒ स्रिध॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta syā no divā matir aditir ūtyā gamat | sā śaṁtāti mayas karad apa sridhaḥ ||

पद पाठ

उ॒त । स्या । नः॒ । दिवा॑ । म॒तिः । अदि॑तिः । ऊ॒त्या । आ । ग॒म॒त् । सा । शम्ऽता॒ति॒ । मयः॑ । क॒र॒त् । अप॑ । स्रिधः॑ ॥ ८.१८.७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:18» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसकी प्रशंसा करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (मतिः) बुद्धिरूपा (सा) वह (अदितिः) अदितिदेवी (दिवा) दिन में (ऊत्या) रक्षा के साथ (नः) हमारे निकट (आ+गमत्) आवें। (सा) वह अदिति (शन्ताति) शान्ति कर (मयः) सुख (करत्) करे तथा (स्रिधः) बाधक दुष्टों और विघ्नों को (अप) दूर करे ॥७॥
भावार्थभाषाः - बुद्धि को सदा अज्ञान के विनाश करने में लगावे, तब ही जगत् में सुख हो सक्ता है ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) और (स्या) वह (मतिः, अदितिः) मतिरूप अदिति (दिवा) दिन में कार्य प्रारम्भ करने पर (नः) हमारे समीप (ऊत्या) रक्षा सहित (आगमत्) आवे और आकर (सा) वह (शन्ताति, मयः) शान्तिकर सुख को (करत्) उत्पन्न करे (स्रिधः) कार्यबाधकों को (अप) दूर करे ॥७॥
भावार्थभाषाः - वह विद्या कार्य्य प्रारम्भ करने पर हमारी रक्षा करे, प्रारम्भ किये हुए प्रत्येक कार्य्य को पूर्ण करे, किसी कार्य्य में हमें हानि न हो अर्थात् विद्या=बुद्धिपूर्वक जो कार्य्य किये जाते हैं, वे सफलमनोरथ होते, शान्ति तथा सुख उत्पन्न करते और बुद्धिपूर्वक किये हुए कार्य्य में कोई विरोधी भी कृतकार्य्य नहीं हो सकता, इसलिये प्रत्येक पुरुष को विद्या की उन्नति करने में यत्नवान् होना चाहिये ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तां प्रशंसति।

पदार्थान्वयभाषाः - उत=अपि च। मतिर्बुद्धिः=बुद्धिरूपा। स्या=सा प्रसिद्धा अदितिर्बुद्धि देवी। ऊत्या=रक्षया सह। नोऽस्मान्। दिवा=दिने। आगमत्=आगच्छतु। पुनः। सा अदितिः। शन्ताति=शान्तिकरम्। मयः=सुखम्। करत्=करोतु। तथा। स्रिधः=बाधकान् दुष्टान् विघ्नांश्च। अप=अपगमयतु ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अथ (स्या) सा (मतिः, अदितिः) मतिर्भूत्वा विद्या (दिवा) दिने कार्यसमये (नः) अस्मान् (ऊत्या) रक्षया सह (आगमत्) आगच्छेत् (सा) सा च (शन्ताति, मयः) शान्तिकरं सुखम् (करत्) कुर्यात् (स्रिधः) बाधकांश्च (अप) अपनयतु ॥७॥