वांछित मन्त्र चुनें

दे॒वेभि॑र्देव्यदि॒तेऽरि॑ष्टभर्म॒न्ना ग॑हि । स्मत्सू॒रिभि॑: पुरुप्रिये सु॒शर्म॑भिः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

devebhir devy adite riṣṭabharmann ā gahi | smat sūribhiḥ purupriye suśarmabhiḥ ||

पद पाठ

दे॒वेभिः॑ । दे॒वि॒ । अ॒दि॒ते॒ । अरि॑ष्टऽभर्मन् । आ । ग॒हि॒ । स्मत् । सू॒रिऽभिः॑ । पु॒रु॒ऽप्रि॒ये॒ । सु॒शर्म॑ऽभिः ॥ ८.१८.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:18» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

बुद्धि को सम्बोधित कर उपदेश देते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (देवि) हे दिव्यगुणयुक्ते (अरिष्टभर्मन्) अदुष्टपोषिके (पुरुप्रिये) बहुप्रिये (अदिते) बुद्धे ! आप (सूरिभिः) नवीन-२ आविष्कारकारी विद्वानों (सुशर्मभिः) और मङ्गलमय (देवेभिः) दिव्यगुणसमन्वित पुरुषों के साथ (स्मत्) जगत् की शोभा के लिये (आगहि) आइये ॥४॥
भावार्थभाषाः - ऐसे-२ प्रकरण में अदिति नाम सुबुद्धि का है। विद्वानों और मङ्गलकारी मनुष्यों की यदि सुबुद्धि हो, तो संसार का बहुत उपकार हो सकता है, क्योंकि वे तत्त्ववित् पुरुष हैं। अतः बुद्धि के लिये प्रार्थना है ॥४॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवि) हे द्योतमान (अरिष्टभर्मन्) अविनाशी पालन करनेवाली (पुरुप्रिये) अनेकों की प्रिया (अदिते) दीनतारहित विद्ये ! (देवेभिः) दिव्यशक्तिवाले (सुशर्मभिः) सुन्दर कल्याणवाले (सूरिभिः) विद्वानों द्वारा (स्मत्) शोभन रीति से (आगहि) आप हमारे पास आवें ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि पुरुष को प्रकाशित करनेवाली, सब पदार्थों की द्योतक, पुरुष को ऐश्वर्य्य में परिणत करनेवाली और दीनतारहित भावों को मनुष्य में प्रवेश करानेवाली विद्या उक्त विद्वानों को संगति द्वारा ही प्राप्त हो सकती है, इसलिये प्रजाजनों को उचित है कि विद्याप्राप्ति के लिये विद्वानों का सङ्ग करे ॥४॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

बुद्धिं सम्बोध्योपदिशति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवि=दिव्यगुणभूषिते, हे अरिष्टभर्मन्=अरिष्टानामदुष्टानां भर्मन्=पोषिके, हे पुरुप्रिये=बहुप्रिये सर्वप्रिये, अदिते=अखण्डनीये बुद्धे ! सूरिभिः=विद्वद्भिराविष्कारकर्तृभिः। सुशर्मभिः=शोभनकल्याणैः। देवेभिः=दिव्यगुणयुक्तैः सह। स्मदिति शोभायाम्। शोभनं यथा भवति तथा। आगहि=आगच्छ ॥४॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवि) हे द्योतमाने (अरिष्टभर्मन्) अविनाशिपालने (पुरुप्रिये) बहूनां प्रिये (अदिते) दैन्यरहितविद्ये ! (देवेभिः) दिव्यशक्तिभिः (सुशर्मभिः, सूरिभिः) सुसुखप्रदैर्विद्वद्भिः (स्मत्) शोभनरीत्या (आगहि) आयाहि नः ॥४॥