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ये चि॒द्धि मृ॒त्युब॑न्धव॒ आदि॑त्या॒ मन॑व॒: स्मसि॑ । प्र सू न॒ आयु॑र्जी॒वसे॑ तिरेतन ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ye cid dhi mṛtyubandhava ādityā manavaḥ smasi | pra sū na āyur jīvase tiretana ||

पद पाठ

ये । चि॒त् । हि । मृ॒त्युऽब॑न्धवः । आदि॑त्याः । मन॑वः । स्मसि॑ । प्र । सु । नः॒ । आयुः॑ । जी॒वसे॑ । ति॒रे॒त॒न॒ ॥ ८.१८.२२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:18» मन्त्र:22 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:28» मन्त्र:7 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:22


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शिव शंकर शर्मा

आयु बढ़ानी चाहिये, ऐसा दिखाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्याः) हे बुद्धिपुत्र आचार्य्यो ! (हि) जिस कारण (ये+चित्) जो हम (मनवः) मनुष्य (स्मसि) विद्यमान हैं, वे हम सब (मृत्युबन्धवः) मृत्यु के बन्धु हैं अर्थात् हम सब अवश्य मरनेवाले हैं। इस कारण (नः) हम लोगों के (जीवसे) जीवन के लिये (आयुः) आयु को (सु) अच्छे प्रकार (प्र+तिरेतन) बढ़ा देवें ॥२२॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों के सङ्ग से आयु की वृद्धि होती है ॥२२॥
टिप्पणी: यह अष्टम मण्डल का अठारहवाँ सूक्त और अट्ठाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्याः) हे आरोग्य तथा सदाचार के शिक्षक विद्वानो ! (ये, चित्, नः, हि) हम लोगों में जो (मृत्युबन्धवः, मनवः) मृत्यु की सम्भावनावाले मनुष्य (स्मसि) हैं, उसकी (जीवसे) जीवनवृद्धि के लिये (सु, आयुः) सुखमय आयु=जीवनकाल (तिरेतन) प्रदान करें ॥२२॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् पुरुषो ! आप आरोग्य रहने तथा सदाचारी रहने की शिक्षा देनेवाले हैं, आपके उपदेश पर अनुष्ठान करनेवाला पवित्र होता है। हे हमारे रक्षक विद्वज्जन ! हमारे पिता परपिता आदि वृद्ध पुरुष तथा परिवार में रोगार्त्त पुरुष, जो निकट मृत्युवाले हैं, उनके जीवन की वृद्धि अर्थ सुखमय जीवनकाल प्रदान करें, जिससे ये प्रयाणकाल में सद्गति को प्राप्त हों ॥२२॥ यह अठारहवाँ सूक्त और अट्ठाईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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शिव शंकर शर्मा

आयुर्वर्धनीय इति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे आदित्याः=बुद्धिपुत्रा आचार्य्याः ! हि=यस्मात् कारणात्। ये+चित्=ये च वयम्। मनवः=मनुष्याः। स्मसि=स्मः। ते वयम्। मृत्युबन्धवः=मृत्योर्मरणस्य बान्धवाः। मरणधर्माण इत्यर्थः। अतो यूयं नोऽस्माकम्। जीवसे=बहुकालजीवनाय। आयुः। सु=सुष्ठु। प्र+तिरेतन=प्रवर्धयत ॥२२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्याः) हे सदाचारारोग्यप्रकारयोः शिक्षका विद्वांसः ! (ये, चित्, नः, हि) येऽस्मासु हि (मृत्युबन्धवः, मनवः) मरणाय सम्भाविताः, मनुष्याः (स्मसि) स्मः तेभ्यः (जीवसे) जीवनाय (स्वायुः) सुखमयमायुः (तिरेतन) प्रयच्छत ॥२२॥ इति अष्टादशं सूक्तमष्टाविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥