पदार्थान्वयभाषाः - (त्रातारम्) प्रजाओं के रक्षक (मरुताम्, देवम्) योद्धाओं के स्वामी से (अश्विना) ज्ञान तथा कर्म द्वारा सर्वत्र वर्तमान नेताओं से (मित्रम्) सब पर स्नेह रखनेवाले नेता से (वरुणम्) प्रजाओं के विघ्नवारण करने में प्रवृत्त नेता से (स्वस्तये) सुखके लिये (बृहत्) पुत्रधनादि सुखहेतुसम्पन्न (वरूथम्) गृह हो (ईमहे) याचना करते हैं ॥२०॥
भावार्थभाषाः - प्रजाओं के रक्षक योद्धाओं तथा राष्ट्रपति के स्वामी विद्वान्, पुरुष, ज्ञान तथा कर्मकाण्ड का प्रचार करनेवाले, मनुष्यमात्र को मित्रता की दृष्टि से देखनेवाले, प्रजाओं के दुःख तथा उनके मार्ग में विघ्नों के निवारण करनेवाले और न्यायपथ से च्युत राष्ट्रपति के अन्याय से दुःखी प्रजा को सुख में परिणत करनेवाले नेताओं से हम याचना करते हैं कि वे हमारी सन्तानों को सुमार्ग में प्रवृत्त करें और धनधान्यसहित हमारे गृहों के रक्षक हों ॥२०॥