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तत्सु न॒: शर्म॑ यच्छ॒तादि॑त्या॒ यन्मुमो॑चति । एन॑स्वन्तं चि॒देन॑सः सुदानवः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tat su naḥ śarma yacchatādityā yan mumocati | enasvantaṁ cid enasaḥ sudānavaḥ ||

पद पाठ

तत् । सु । नः॒ । शर्म॑ । य॒च्छ॒त॒ । आदि॑त्याः । यत् । मुमो॑चति । एन॑स्वन्तम् । चि॒त् । एन॑सः । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ ॥ ८.१८.१२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:18» मन्त्र:12 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:12


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय कहा जाता है।

पदार्थान्वयभाषाः - (सुदानवः) हे सुन्दर दान देनेवाले (आदित्याः) आचार्य्यों (नः) हमको (तत्+शर्म) उस कल्याण को (सु) अच्छे प्रकार (यच्छत) दीजिये (यत्) जो कल्याण (एनस्वन्तम्+चित्) पापयुक्त भी हम लोगों के पुत्रादिक को (एनसः) पाप से (मुमोचति) छुड़ा सके। वह ज्ञानरूप कल्याण है। वही आदमी को पाप से बचा सकता है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर से ज्ञानरूप कल्याण की याचना करनी चाहिये, वही मनुष्य को पाप से बचा सकता है ॥१२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुदानवः) हे शोभन दानवाले (आदित्याः) विद्वानों ! आप (नः) हमको (तत्, शर्म, यच्छत) उस सुख को दें (यत्) जो (एनस्वन्तम्) पापी को (एनसः) पाप से (मुमोचति, चित्) छुड़ा ही देता है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - हे श्रेष्ठसम्पत्तिवाले विद्वान् पुरुषो ! आप विद्या के दान द्वारा हमको पवित्र भावों में परिणत करें, जिससे हम सब पापों से निवृत्त होकर सुखी हों ॥१२॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्त्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे आदित्याः=आचार्य्याः। नोऽस्मभ्यम्। तत्+शर्म=तज्ज्ञानरूपं कल्याणम्। सु=सुष्ठु यच्छतं दत्त। हे सुदानवः=शोभनदानाः। यत् शर्म। एनस्वन्तं चिद् पापिनमपि पुत्रादिकम्। एनसः=पापात्। मुमोचति=मोचयितुं शक्नोति ॥१२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुदानवः) हे शोभनदानः (आदित्याः) विद्वांसः ! (नः) अस्मभ्यम् (तत्, शर्म, यच्छत) तादृशं सुखं दत्त (यत्) यत्सुखम् (एनस्वन्तम्) पापिनम् (एनसः) पापात् (मुमोचति, चित्) मोचयत्येव ॥१२॥