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अपामी॑वा॒मप॒ स्रिध॒मप॑ सेधत दुर्म॒तिम् । आदि॑त्यासो यु॒योत॑ना नो॒ अंह॑सः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

apāmīvām apa sridham apa sedhata durmatim | ādityāso yuyotanā no aṁhasaḥ ||

पद पाठ

अप॑ । अमी॑वाम् । अप॑ । स्रिध॑म् । अप॑ । से॒ध॒त॒ । दुः॒ऽम॒तिम् । आदि॑त्यासः । यु॒योत॑न । नः॒ । अंह॑सः ॥ ८.१८.१०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:18» मन्त्र:10 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:26» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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शिव शंकर शर्मा

पुनः प्रार्थना का विधान करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) हे बुद्धिपुत्र आचार्य्यो ! तथा विद्वानों ! आप (अमीवाम्) रोग को (अपः+सेधत) मनुष्यसमाज से दूर कीजिये (स्रिधम्) बाधक विघ्न और शत्रु को (अप) दूर कीजिये (दुर्मतिम्) दुर्बुद्धि को (अप) दूर कीजिये। तथा (नः) हम साधारणजनों को (अंहसः) पाप क्लेश और दुर्व्यसन आदि से (युयोतन) पृथक् करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! तुम सद्बुद्धि उपार्जन करो, जिससे तुम सब प्रकार सुखी होगे ॥१०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) हे विविध विद्याओं को जाननेवाले ! (अमीवाम्, अप) आप हर प्रकार के रोगों को दूर करें (स्रिधम्, अप) कर्मघाती को दूर करें (दुर्मतिम्) दूषित बुद्धि को (अपसेधत) दूर करें (नः) हमको (अंहसः) पाप से (युयोतन) मुक्त करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे सब विद्याओं के ज्ञाता परमात्मन् ! आप हमसे शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकारे के रोग दूर करें, हमारे कामों में विघ्नकारक पुरुषों को हमसे सदा पृथक् रखें और हमें पवित्र बुद्धि दें, जिससे हम सब पापों से दूर रहकर उन्नतिशील हों ॥१०॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनः प्रार्थना विधीयते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे आदित्यासः=आदित्याः=बुद्धिपुत्रा मनुष्याः। अमीवाम्=रोगम्। अपसेधत=पृथक् कुरुत। स्रिधम्=बाधकं शत्रुं विघ्नं वा। अपसेधत। दुर्मतिम्=दुर्बुद्धिमपि। अपसेधत। तथा। नोऽस्मान्। अंहसः=पापादपि। युयोतन=पृथक् कुरुत ॥१०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) हे विद्यावेत्तारः ! (अमीवाम्, अप) रोगमपनयत (स्रिधम्, अप) बाधकान् अपास्यत (दुर्मतिम्) दुर्बुद्धिम् (अपसेधत) अपगमयत (नः) अस्मान् (अंहसः) पापात् (युयोतन) पृथक्कुरुत ॥१०॥