वांछित मन्त्र चुनें

इन्द्र॒ प्रेहि॑ पु॒रस्त्वं विश्व॒स्येशा॑न॒ ओज॑सा । वृ॒त्राणि॑ वृत्रहञ्जहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indra prehi puras tvaṁ viśvasyeśāna ojasā | vṛtrāṇi vṛtrahañ jahi ||

पद पाठ

इन्द्र॑ । प्र । इ॒हि॒ । पु॒रः । त्वम् । विश्व॑स्य । ईशा॑नः । ओज॑सा । वृ॒त्राणि॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । ज॒हि॒ ॥ ८.१७.९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:17» मन्त्र:9 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

विघ्नविनाश के लिये प्रार्थना दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र परमदेव ! तू (ओजसा) निज महती शक्ति से (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् का (ईशानः) स्वामी है। वह तू (पुरः) हम प्राणियों के सम्मुख (प्रेहि) आ जा। (वृत्रहन्) हे निखिलविघ्नविनाशक देव (वृत्राणि) हमारे सकल विघ्नों को (जहि) विनष्ट कर ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! इस सम्पूर्ण जगत् का स्वामी वही ईश है। वही तुम्हारे समस्त विघ्नों का विनाश कर सकता है। उसी की उपासना सब कोई करो ॥९॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे योद्धा ! (ओजसा) स्व पराक्रम से (विश्वस्येशानः) सबको नीचे करते हुए (त्वम्) आप (पुरः, प्रेहि) रक्षा के लिये हमारे अभिमुख आवें (वृत्रहन्) हे शत्रुओं को हनन करनेवाले ! (वृत्राणि) सब शत्रुओं को (जहि) नष्ट करें ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे युद्ध में शत्रुओं को हनन करनेवाले योद्धा लोगो ! आप अपने अमित पराक्रम से वेदविरोधी, प्रजा को कष्ट देनेवाले तथा श्रेष्ठ=उच्च भावोंवाले पुरुषों का अपमान करनेवाले शत्रुओं को नष्ट करके राष्ट्र को सुख-सम्पत्ति से समृद्ध करें ॥९॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

विघ्नविनाशाय प्रार्थनां दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! ओजसा=महत्या शक्त्या। विश्वस्य=सर्वस्य जगतः। ईशानः=स्वामी। पुरोऽस्माकं पुरस्तात्। प्रेहि=प्रगच्छ=प्राप्नुहि। हे वृत्रहन्=वृत्राणां निखिलावरकाणां विघ्नानाम्। हन्तः=विनाशक। वृत्राणि=विघ्नजातानि। जहि=विनाशय ॥९॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! (ओजसा) बलेन (विश्वस्य, ईशानः) सर्वस्य स्वामी भवन् (त्वम्, पुरः, प्रेहि) त्वं रक्षायै अग्रतः प्रगच्छ (वृत्रहन्) हे शत्रुहन्तः ! (वृत्राणि, जहि) शत्रून् नाशय ॥९॥