स्वा॒दुष्टे॑ अस्तु सं॒सुदे॒ मधु॑मान्त॒न्वे॒३॒॑ तव॑ । सोम॒: शम॑स्तु ते हृ॒दे ॥
                                    अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
                  
                
                svāduṣ ṭe astu saṁsude madhumān tanve tava | somaḥ śam astu te hṛde ||
                  पद पाठ 
                  
                                स्वा॒दुः । ते॒ । अ॒स्तु॒ । स॒म्ऽसुदे॑ । मधु॑ऽमान् । त॒न्वे॑ । तव॑ । सोमः॑ । शम् । अ॒स्तु॒ । ते॒ । हृ॒दे ॥ ८.१७.६
                  ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:17» मन्त्र:6 
                  | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:23» मन्त्र:1 
                  | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:6
                
              
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                    शिव शंकर शर्मा
इन्द्र की प्रार्थना करते हैं।
                   पदार्थान्वयभाषाः -  हे इन्द्र ! (संसुदे) जगत् को अच्छे प्रकार दानदाता (ते) तेरे लिये मेरा (सोमः) सोम पदार्थ (स्वादुः+अस्तु) स्वादु होवे। (तव+तन्वे) तेरे जगद्रूप शरीर के लिये वह (मधुमान्) मधुर सोम हितकर होवे। (ते+हृदे) तेरे संसाररूप हृदय के लिये (शम्+अस्तु) सुखकर होवे ॥६॥              
              
              
                            
                  भावार्थभाषाः -  हे मनुष्यों ! जगत् में प्रेम प्रसारित करो। यहाँ प्रेम का अभाव देखते हैं, राग, द्वेष, हिंसा, द्रोह आदि से यह संसार पूर्ण हो रहा है। मनुष्य में विवेक इसी कारण दिया गया है कि वह इन कुकर्मों से बचे और बचावे ॥६॥              
              
              
                            
                            
                 टिप्पणी:   पूर्व में लिख आया हूँ कि यह चराचर जगत् ही ईश्वर का शरीर अङ्ग और अवयव हैं। उपासक प्रार्थना करता है कि मेरा पदार्थ जगत् में रुचिकर, हितकर और सुखकर होवे। यहाँ इन्द्र के शरीर हृदय आदि प्रदेश से जगत् के जीवों के अवयवों का ग्रहण है ॥६॥              
              
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                    आर्यमुनि
                   पदार्थान्वयभाषाः -  (मधुमान्, सोमः) मधुर सोम (ते, संसुदे) सम्यक् क्षरिता आपके लिये (स्वादुः, अस्तु) स्वादु हो (तव, तन्वे) आपके शरीर के लिये (ते, हृदे) और अन्तःकरण के लिये (शम्, अस्तु) सुखकर हो ॥६॥              
              
              
                            
                  भावार्थभाषाः -  हे क्षात्रबलप्रधान योद्धाओ ! हमारा सिद्ध किया हुआ सोमरस, जो स्वादु और पुष्टिकारक है, यह आपके शरीर और आत्मा के लिये पुष्टिकारक तथा बलप्रद हो, जिससे आप प्रजा की रक्षा करने में सर्वथा समर्थ हों ॥६॥              
              
              
                            
              
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                    शिव शंकर शर्मा
इन्द्रः प्रार्थ्यते।
                   पदार्थान्वयभाषाः -  हे इन्द्र ! संसुदे=सम्यक् सुष्ठुदात्रे। ते=तुभ्यम्। मम सोमः। स्वादुरस्तु=रुचिकरो भवतु। मधुमानयं सोमः तव। तन्वे=शरीराय च हितकरोऽस्तु। ते=तव। हृदे=हृदयाय। शमस्तु=सुखकरो भवतु ॥६॥              
              
              
              
              
                            
              
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                    आर्यमुनि
                   पदार्थान्वयभाषाः -  (मधुमान्, सोमः) मधुयुक्तः सोमः (संसुदे, ते) सम्यक् क्षरित्रे तुभ्यम् (स्वादुः, अस्तु) आस्वादनीयो भवतु (तव, तन्वे) तव शरीराय (ते, हृदे) मानसाय च (शम्, अस्तु) सुखकरमस्तु ॥६॥              
              
              
              
              
                            
              
            
                  