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ब्र॒ह्माण॑स्त्वा व॒यं यु॒जा सो॑म॒पामि॑न्द्र सो॒मिन॑: । सु॒ताव॑न्तो हवामहे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

brahmāṇas tvā vayaṁ yujā somapām indra sominaḥ | sutāvanto havāmahe ||

पद पाठ

ब्र॒ह्माणः॑ । त्वा॒ । व॒यम् । यु॒जा । सो॒म॒ऽपाम् । इ॒न्द्र॒ । सो॒मिनः॑ । सु॒तऽव॑न्तः । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ ८.१७.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:17» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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शिव शंकर शर्मा

पुनः इन्द्र की प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे परमदेव ! (ब्रह्माणः) शुद्ध, पवित्र, अहिंसक स्तुतिपरायण स्तुतिकर्त्ता (सोमिनः) सकल सामग्रीसंपन्न सोमरसयुक्त और (सुतावन्तः) सर्वदा शुभकर्मकारी (वयम्) हम उपासकगण (युजा) योग द्वारा (त्वाम्) तुझको (हवामहे) बुलाते हैं। हे भगवन् ! जिस कारण हम शुद्ध पवित्र शुभकर्मकारी हैं, अतः हमारे मन में आप निवास करें, जिससे दुर्व्यसनादि दोष हमको न पकड़ें ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रथम वेदविहित यज्ञों को और सत्यादिकों के अभ्यास द्वारा अपने अन्तःकरण को शुद्ध पवित्र बनावे, तब उससे जो कुछ प्रार्थना करेगा, वह स्वीकृत होगी। अतः मूल में ब्रह्माणः इत्यादि पद आए हैं ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे योद्धा ! (सोमिनः) सोमसहित (सुतावन्तः) सिद्धरस लिये हुए (वयं, ब्रह्माणः) हम ब्राह्मण लोग (सोमपाम्, त्वा) सोमपानशील आपको (युजा) योग्य स्तोत्रों से (हवामहे) आह्वान करते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे विजय को प्राप्त योद्धा ! हम याज्ञिक ब्राह्मण आपको यज्ञसदन में आह्वान करते हैं, आप हमारे यज्ञस्थान को प्राप्त होकर हमारा यह सत्कार स्वीकार करें और हमारे सर्व प्रकार से रक्षक होकर यज्ञपूर्ति में सहायक हों ॥३॥
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शिव शंकर शर्मा

इन्द्रः प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! ब्रह्माणः=ब्राह्मणाः=स्तुतिकर्त्तारः। सोमिनः=सोमाः प्रशस्ताः पदार्थाः सन्त्येषामिति सोमिनो यज्ञसामग्रीसंपन्नाः। पुनः। सुतावन्तः=शुभकर्मवन्तो वयम्। त्वा=त्वाम्। युजा=योगेन। हवामहे=आह्वयामहे=प्रार्थयामहे। त्वं प्रार्थितः सन्नागच्छ ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे योद्धः ! (सोमिनः) सोमवन्तः (सुतावन्तः) सवनं कृतवन्तः (वयम्, ब्रह्माणः) वयं ब्राह्मणाः (सोमपाम्, त्वा) सोमपानशीलं त्वाम् (हवामहे) आह्वयामः (युजा) योग्येन स्तोत्रेण ॥३॥