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आ त्वा॑ ब्रह्म॒युजा॒ हरी॒ वह॑तामिन्द्र के॒शिना॑ । उप॒ ब्रह्मा॑णि नः शृणु ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā tvā brahmayujā harī vahatām indra keśinā | upa brahmāṇi naḥ śṛṇu ||

पद पाठ

आ । त्वा॒ । ब्र॒ह्म॒ऽयुजा॑ । हरी॒ इति॑ । वह॑ताम् । इ॒न्द्र॒ । के॒शिना॑ । उप॑ । ब्रह्मा॑णि । नः॒ । शृ॒णु॒ ॥ ८.१७.२

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:17» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:22» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी अर्थ को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) सर्वद्रष्टा ईश्वर ! (ब्रह्मयुजा) महामहायोजनायुक्त। महामहा रचनासंयुक्त पुनः (केशिना) सूर्य्यादिरूप केशवान् यद्वा सुखके स्वामी (हरी) परस्पर हरणशील स्थावर और जङ्गमात्मक जो संसारद्वय हैं, वे (त्वाम्) तुझको (आ+वहताम्) ले आवें=प्रकाशित कर दिखलावें। हे इन्द्र ! (नः) हमारे (ब्रह्माणि) स्तोत्र और स्तुतिप्रार्थनाओं को (उप) समीप आकर (शृणु) सुन ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यों ! इसमें अणुमात्र सन्देह नहीं कि यदि हम प्रेम श्रद्धा और भक्तिभावसम्पन्न होकर उसकी प्रार्थना करें, तो वह अवश्य सुनेगा। यदि उसकी विभूतियाँ देखना चाहें, तो नयन उठाकर इस महामहाऽद्भुत जगत् को देखें। इसी में वह अपनी लीला प्रकट कर रहा है ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे योद्धा ! (ब्रह्मयुजा) ऐश्वर्य्य के साथ जोड़नेवाले (केशिना, हरी) अच्छे केशोंवाले अश्व (आवहताम्, त्वा) आपको मेरे सन्मुख ले आएँ (नः, ब्रह्माणि) हमारे स्तोत्रों को (उपशृणु) समीप होकर सुनें ॥२॥
भावार्थभाषाः - यज्ञसदन में यज्ञ के नेता की ओर से यह कथन है कि हे युद्धविशारद योद्धा ! तुम अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर, अश्व पर सवार होकर युद्ध में जाओ और शत्रु पर विजयप्राप्त कर हमारे सन्मुख आओ और हमारी स्तुतिप्रद वाणियों को श्रवण कर हर्ष को प्राप्त होओ। परमात्मा आपको युद्ध में विजयी होने के लिये बल प्रदान करें ॥२॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - परमात्मदर्शकमिदं जगदस्ति। अनेनैव तं पश्यन्तु जना इत्यादिशत्यनया। यथा−हे इन्द्र सर्वद्रष्टः ! ब्रह्मयुजा=ब्रह्मयुजौ=ब्रह्म सर्वेभ्यो बृहत्तमं युग् योजनं ययोस्तौ महामहायोजनायुक्तौ। पुनः। केशिना=केशिनौ=सूर्य्यादयः पदार्थाः केशरूपेण स्थिता ययोस्तौ सूर्य्यादिकेशवन्तौ। यद्वा। कस्य सुखस्य। ईशिनौ=स्वामिनौ। ईदृशौ। हरी=परस्परहरणशीलौ स्थावरजङ्गमात्मकौ संसारौ। त्वा=त्वाम्। आवहताम्= प्रकाशयताम्=दर्शयताम्। हे इन्द्र ! त्वं नोऽस्माकं ब्रह्माणि=स्तोत्राणि। स्तुतिप्रार्थनाः। सदा। उप=उपेत्य। शृणु ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे योद्धः ! (ब्रह्मयुजा) ऐश्वर्येण योजनशीलौ (केशिना, हरी) प्रशस्तकेशावश्वौ (त्वा, आवहताम्) अभिमुखं त्वां वहताम् (नः, ब्रह्माणि) अस्माकं स्तोत्राणि (उपशृणु) समीपे शृणु ॥२॥