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यस्यानू॑ना गभी॒रा मदा॑ उ॒रव॒स्तरु॑त्राः । ह॒र्षु॒मन्त॒: शूर॑सातौ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yasyānūnā gabhīrā madā uravas tarutrāḥ | harṣumantaḥ śūrasātau ||

पद पाठ

यस्य॑ । अनू॑नाः । ग॒भी॒राः । मदाः॑ । उ॒रवः॑ । तरु॑त्राः । ह॒र्षु॒ऽमन्तः॑ । शूर॑ऽसातौ ॥ ८.१६.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:16» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

पुनः इन्द्र की स्तुति कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिस ईश्वर के (मदाः) विविध आनन्दप्रद जगत् (अनूनाः) अन्यून अर्थात् पूर्ण (गम्भीराः) अत्यन्त गम्भीर (उरवः) जालवत् विस्तीर्ण (तरुत्राः) सन्तों के तारक और (शूरसातौ) जीवनयात्रा में (हर्षुमन्तः) आनन्दयुक्त हैं। हे मनुष्यों ! उसकी सेवा करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - मदाः=ईशरचित विविध संसार का नाम मद है, क्योंकि इसमें ही जीव क्रीड़ा करते हैं। वह न्यून, गम्भीर, उरु और रक्षक है। शूरसाति=संग्राम। जिसमें शूरवीर पुरुष ही लाभ उठा सकते हैं। देखते हैं कि इस जीवनयात्रा में भी वे ही कृतकृत्य होते हैं, जो मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक तीनों बलों में सुपुष्ट हैं ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) जिसकी (शूरसातौ) शूरों को देने के लिये (मदाः) उत्साहादि शक्तियें (अनूनाः) कम न होनेवाली (गभीराः) अगाध (उरवः) विस्तीर्ण (तरुत्राः) शत्रुओं से पार करनेवाली (हर्षुमन्तः) और आह्लाद उत्पन्न करनेवाली हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - वह महान् बलसम्पन्न परमात्मा, जिसकी शक्तियें शूरवीरों को उत्साह तथा आह्लादजनक हैं, वे ही शत्रुओं को विजय करानेवाली, सर्वत्र विस्तीर्ण और अगाध हैं अर्थात् जिनका पारावार नहीं, परमात्मा अपने उपासक योद्धाओं को उक्त शक्ति प्रदान कर विजय प्राप्त कराते हैं, अत एव विजय की कामनावाले योद्धाओं को निरन्तर उसकी उपासना में प्रवृत्त रहना चाहिये ॥४॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनरपि इन्द्रः स्तूयते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः। मदाः=माद्यन्ति क्रीडन्ति जीवा अत्रेति मदा ईशररचितानि विविधानि जगन्ति। यस्येन्द्रस्य। मदाः। अनूनाः=अन्यूनाः=पूर्णाः। पुनः। गभीराः=दुर्बोधतया गाम्भीर्य्योपेताः। पुनः। उरवः। सर्वत्र विस्तीर्णा जालवत्। पुनः। तरुत्राः=तारकाः साधूनाम्। पुनः। शूरसातौ=शूरसंभजनीये संग्रामे जीवनयात्रायाम्। हर्षुमन्तः=हर्षयुक्ताः सन्ति। तमेव सेवध्वमिति शिक्षते ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यस्य) यस्य परमात्मनः (शूरसातौ) शूरेभ्यो दानाय (मदाः) उत्साहशक्तयः (अनूनाः) अन्यूनाः (गभीराः) गाम्भीर्यवत्यः (उरवः) विस्तीर्णाः (तरुत्राः) तारयित्र्यः (हर्षुमन्तः) आह्लादप्रदाः ॥४॥