वांछित मन्त्र चुनें

क्रीळ॑न्त्यस्य सू॒नृता॒ आपो॒ न प्र॒वता॑ य॒तीः । अ॒या धि॒या य उ॒च्यते॒ पति॑र्दि॒वः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

krīḻanty asya sūnṛtā āpo na pravatā yatīḥ | ayā dhiyā ya ucyate patir divaḥ ||

पद पाठ

क्रीळ॑न्ति । अ॒स्य॒ । सू॒नृताः॑ । आपः॑ । न । प्र॒ऽवता॑ । य॒तीः । अ॒या । धि॒या । यः । उ॒च्यते॑ । पतिः॑ । दि॒वः ॥ ८.१३.८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:13» मन्त्र:8 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:8» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

वह सबका पति है, यह दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! परमात्मा का माहात्म्य देखो। (अस्य) इस इन्द्र नामी ईश्वर के (सूनृताः) प्रिय और सत्यवचन प्रकृतियों में (क्रीडन्ति) विहार कर रहे हैं। यहाँ दृष्टान्त देते हैं−(आपः+न) जैसे जल (प्रवता) निम्नमार्ग से (यतीः) चलते हुए विहार करते हैं। हे मनुष्यों ! (यः) जो इन्द्र (अया) इस (धिया) विज्ञान वा क्रिया से (दिवः) स्वर्ग या प्रकाश का पति (उच्यते) कहाता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - ईश्वर कर्ता है और यह जगत् कार्य है। कार्यों में जो क्रिया है, वह उसी की है। अतः मनुष्य जाति से लेकर कीटपर्यन्त प्राणियों में जो वचन, जो शक्तियाँ, जो सौन्दर्य्य, इस प्रकार की जो आश्चर्यरचना है, वह ईश्वर की है। अतः वह विज्ञानपति है ॥८॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो परमात्मा (अया, धिया) इस स्तुति द्वारा (दिवः, पतिः) द्युलोक का स्वामी (उच्यते) कहा जाता है (प्रवता) निम्नमार्ग से (यतीः) जानेवाले (आपः) जलों के (न) समान (अस्य, सूनृताः) इसकी प्रियसत्य वाणियें (क्रीळन्ति) विहर रही हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - वह पूर्ण परमात्मा, जो द्युलोकादि लोक-लोकान्तरों का स्वामी तथा रक्षक है, उसकी वेदरूप वाणियें अनायास सर्वत्र विस्तृत हो रही है। जैसे जल स्वाभाविक अनायास ही निम्न स्थानों को प्राप्त होता है, इसी प्रकार वेदरूप प्रिय सत्य वाणियें मनुष्यमात्र को प्राप्त होने से सबके अनुष्ठानयोग्य हैं ॥८॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

स सर्वस्य पतिरिति दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! परमात्मनो माहात्म्यं पश्यत। अस्येश्वरस्येन्द्रनाम्नः। सूनृताः=प्रियसत्यात्मिका वाचः। प्रकृतिषु क्रीडन्ति=विहरन्ति। अत्र दृष्टान्तः−आपो न=यथा जलानि। प्रवता=निम्नमार्गेण यतीर्गच्छन्त्यः। उत्पतननिपतनेन विहरन्ति। तद्वत्। य=इन्द्रः। अया=अनया। धिया=विज्ञानेन। दिवः=प्रकाशस्य। पतिः=स्वामी। उच्यते=कथ्यते ॥८॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) यः परमात्मा (अया, धिया) अनया वाचा (दिवः, पतिः) दिवः स्वामी (उच्यते) कथ्यते (प्रवता) निम्नमार्गेण (यतीः) गच्छन्त्यः (आपः, न) जलानीव (अस्य, सूनृताः) अस्य प्रियसत्यवाचः (क्रीळन्ति) विहरन्ति ॥८॥