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यदि॑ मे स॒ख्यमा॒वर॑ इ॒मस्य॑ पा॒ह्यन्ध॑सः । येन॒ विश्वा॒ अति॒ द्विषो॒ अता॑रिम ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yadi me sakhyam āvara imasya pāhy andhasaḥ | yena viśvā ati dviṣo atārima ||

पद पाठ

यदि॑ । मे॒ । स॒ख्यम् । आ॒ऽवरः॑ । इ॒मस्य॑ । पा॒हि॒ । अन्ध॑सः । येन॑ । विश्वाः॑ । अति॑ । द्विषः॑ । अता॑रिम ॥ ८.१३.२१

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:13» मन्त्र:21 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:21


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शिव शंकर शर्मा

इससे प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र परमात्मन् ! (यदि) यदि आप (मे) मेरी (सख्यम्) मैत्री (आवरः) अच्छे प्रकार स्वीकार करें, तो इसकी सूचना के लिये प्रथम (इमस्य) इस (अन्धसः) अन्धा करनेवाले संसार की प्रत्येक वस्तु की (पाहि) रक्षा कीजिये। यद्वा इस अन्धकारी संसार से पृथक् कर मेरी रक्षा कीजिये। (येन) जिससे (विश्वाः) समस्त (द्विषः) द्वेष करनेवाली कामक्रोधादिकों की सेनाओं को हम (अति+अतारिम) अतिशय विजय कर पार उतर जाएँ ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा को निज सखा जान सब वस्तु उसको समर्पित करता है, वही सब क्लेशों को पार कर जाता है ॥२१॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (यदि, मे, सख्यम्) यदि मेरे सखित्व को (आवरः) आप स्वीकार करते हैं, तो (इमस्य, अन्धसः) इस भोक्तव्य पदार्थ को (पाहि) सुरक्षित करें (येन) जिसके द्वारा (विश्वा, द्विषः) सम्पूर्ण द्वेष्टाओं को (अतारिम) हम पार करें ॥२१॥
भावार्थभाषाः - हे सबके मित्र परमेश्वर ! आप अपने मैत्रीभाव से हमारे भोग्य पदार्थों की रक्षा करें अर्थात् वे हमें पुष्कलरूप से प्रदान करें, जिनसे हम पुष्ट होकर आपकी मैत्रीपालन में समर्थ हों, या यों कहो कि शारीरिक तथा आत्मिक बल उन्नत करके आपके समीपवर्ती हों और बलवान् होकर सम्पूर्ण द्वेषियों पर विजय प्राप्त करें। यह आप हमें अपनी मैत्री का परिचय दीजिये, जो आप प्राचीन काल से अपने मित्रों=भक्तों पर दयादृष्टि रखते हैं ॥२१॥
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शिव शंकर शर्मा

प्रार्थना विधीयते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यदि त्वम्। मे=मम। सख्यम्=सखित्वं मित्रताम्। आवरः=आभिमुख्येन वृणुयाः=स्वीकुर्य्याः। तर्हि तत्सूचनार्थम्। इमस्य=अस्य। अन्धसः=संसारस्य अन्धयति सर्वान् व्यामोहयतीति अन्धाः। तत् सम्बन्धिवस्तु। पाहि=रक्ष। यद्वा। इमस्य अस्माद् अन्धसोऽन्धयितुः संसारात्। पृथक्कृत्य मामिति शेषः। पाहि=रक्ष। येन=तव रक्षणेन। विश्वाः=सर्वाः। द्विषः=द्वेष्ट्रीः सेनाः कामक्रोधादीनाम्। अत्यतारिम=अतितरेम=अतिक्रमेम ॥२१॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (यदि, मे, सख्यम्) यदि मम सखित्वम् (आवरः) स्वीकरोषि तर्हि (इमस्य, अन्धसः) इममन्नादिपदार्थम् (पाहि) रक्ष (येन) येनान्धसा (विश्वाः, द्विषः) सर्वान् द्वेष्टॄन् (अतारिम) तरेम ॥२१॥