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स्तो॒ता यत्ते॒ अनु॑व्रत उ॒क्थान्यृ॑तु॒था द॒धे । शुचि॑: पाव॒क उ॑च्यते॒ सो अद्भु॑तः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

stotā yat te anuvrata ukthāny ṛtuthā dadhe | śuciḥ pāvaka ucyate so adbhutaḥ ||

पद पाठ

स्तो॒ता । यत् । ते॒ । अनु॑ऽव्रतः । उ॒क्थानि॑ । ऋ॒तु॒ऽथा । द॒धे । शुचिः॑ । पा॒व॒कः । उ॒च्य॒ते॒ । सः । अद्भु॑तः ॥ ८.१३.१९

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:13» मन्त्र:19 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:10» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:19


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शिव शंकर शर्मा

महिमा का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तोता) स्तुतिपाठकजन (अनुव्रतः) स्वकर्त्तव्यपालन में रत और तुझको प्रसन्न करने के लिये नानाव्रतधारी होकर (ऋतुथा) प्रत्येक ऋतु में=समय-२ पर (यद्+ते) जिस तेरी प्रीति के लिये (उक्थानि) विविध स्तुतिवचनों को (दधे) बनाते रहते हैं, वह तू हम जीवों पर कृपा कर। हे मनुष्यों ! (सः) वह महान् देव (शुचिः) परमपवित्र है (पावकः) अन्यान्य सब वस्तुओं का शोधक और (अद्भुतः) महामहाऽद्भुत (उच्यते) कहलाता है। उसी की उपासना करो, वही मान्य है। वह सबका स्वामी है ॥१९॥
भावार्थभाषाः - जो शुचि, पवित्रकारक और अद्भुत है। उसी को विद्वान् स्तोता अनुव्रत होकर पूजते हैं, हम भी उसी को पूजें ॥१९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (यत्, ते) जिस आपका (स्तोता) उपासक (अनुव्रतः) अनुकूलानुष्ठान करते हुए (ऋतुथा) प्रत्येक ऋतु में (उक्थानि) आपके स्तोत्रों को (दधे) धारण करता है (सः) वह परमात्मा (अद्भुतः) आश्चर्यरूप (शुचिः) स्वयं शुद्ध (पावकः) दूसरों का शोधक (उच्यते) कहा जाता है ॥१९॥
भावार्थभाषाः - हे शुद्धस्वरूप परमात्मन् ! आप और आपकी रचना आश्चर्य्यमय है, जिसको विद्वान् पुरुष धारणा, ध्यान, समाधि द्वारा अनुभव करते हैं। हे प्रभो ! आप ही सबको ज्ञानदाता और आप ही सर्वत्र सुधारक हैं। आपके उपासक ऋतु-२ में यज्ञों द्वारा आपके गुणों को धारण करते हैं, क्योंकि आप स्वयं शुद्ध और दूसरों को पवित्र करनेवाले हैं ॥१९॥
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शिव शंकर शर्मा

महिमानं वर्णयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! स्तोता=स्तुतिपाठकः। अनुव्रतः=स्वकर्त्तव्यपालनेन त्वामेव प्रसादयितुं नानाव्रतधारी भूत्वा। ऋतुथा=ऋतौ ऋतौ काले काले। यद्=यस्य ते प्रीत्यै। उक्थानि=विविधानि स्तुतिवचनानि। दधे=विधत्ते=करोति। परोऽर्धचः परोक्षकृतः। सः=इन्द्रः। शुचिः=शुद्धः। पावकः=सर्वेषां पदार्थानां शोधकः। अपि च। अद्भुतः=आश्चर्य्यभूत उच्यते। स एव मान्योऽस्ति। स सर्वेषां स्वामीति बोद्धव्यम् ॥१९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (यत्, ते) यस्य तव (स्तोता) उपासकः (अनुव्रतः) अनुकूलकर्मणि वर्तमानः (ऋतुथा) प्रत्यृतु (उक्थानि, दधे) स्तोत्राणि दधाति (सः, अद्भुतः) सः आश्चर्यरूपः (शुचिः) शुद्धः (पावकः) शोधकश्च (उच्यते) कथ्यते विप्रैः ॥१९॥