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इ॒मं स्तोम॑म॒भिष्ट॑ये घृ॒तं न पू॒तम॑द्रिवः । येना॒ नु स॒द्य ओज॑सा व॒वक्षि॑थ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

imaṁ stomam abhiṣṭaye ghṛtaṁ na pūtam adrivaḥ | yenā nu sadya ojasā vavakṣitha ||

पद पाठ

इ॒मम् । स्तोम॑म् । अ॒भिष्ट॑ये । घृ॒तम् । न । पू॒तम् । अ॒द्रि॒ऽवः॒ । येन॑ । नु । स॒द्यः । ओज॑सा । व॒वक्षि॑थ ॥ ८.१२.४

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:12» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रिवः) हे अद्रिमन्=हे महादण्डधर परमन्यायिन् इन्द्र ! (पूतम्) पवित्र (घृतम्+न) घृत के समान (इमम्+स्तोमम्) इस मेरे स्तोत्र को (अभिष्टये) अभिमत फलप्राप्ति के लिये तू ग्रहण कर। हे भगवन् ! (येन) जिस स्तुति से प्रसन्न होकर (नु) शीघ्र (सद्यः) तत्काल (ओजसा) बल से (ववक्षिथ) संसार को सुख पहुँचावे ॥४॥
भावार्थभाषाः - यद्यपि परमात्मा सदा एकरस रहता है, मनुष्य केवल अपना कर्त्तव्यपालन करता हुआ शुभकर्म में और ईश्वरीय स्तुति प्रार्थना आदि में प्रवृत्त होता है। ईश्वरीय नियमानुसार उस कर्म का फल मनुष्य को मिलता रहता है, तथापि यदि उपासक की स्तुति सुनकर परमदेव प्रसन्न और चौरादिक आततायी जनों के दुष्कर्मों से अप्रसन्न न हो, तो संसार किस प्रकार चल सकता है। इससे इसकी एकरसता में किञ्चित् भी विकार नहीं होता। इस संसार का कोई विवेकी शासक भी होना चाहिये इत्यादि विविध भावना से प्रेरित हो मनुष्य स्तुति आदि शुभकर्म में प्रवृत्त होता है। यही आशय वेद भगवान् दिखलाता है। मनुष्य की प्रवृत्ति के अनुसार ही वेद है कि भगवान् भक्तों की स्तुति सुनता है और प्रसन्न होकर इस जगत् की रक्षा करता है ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रिवः) हे वज्रशक्तिवाले ! (घृतम्, न) स्वच्छजल के समान (पूतम्) पवित्र (इमम्, स्तोमम्) इस स्तोत्र को (अभिष्टये) अभिमत फलप्राप्ति के लिये सुनें (येन) जिस बल से (नु) निश्चय (सद्यः) तत्काल ही (ओजसा) स्वपराक्रम से (ववक्षिथ) स्तोता का वहन करते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे सब बलों में सर्वोपरि बलवान् परमेश्वर ! हम लोग पवित्र स्तोत्रों द्वारा आपसे याचना करते हैं। कृपा करके हमारी कामनाओं को पूर्ण करें, ताकि हम वैदिक अनुष्ठान में प्रवृत्त रहें। हे प्रभो ! आप पराक्रमसम्पन्न हैं, हमें भी पराक्रमी बनावें, ताकि हम वैदिकमार्ग से च्युत दुष्टों के दमन करने में सदा साहसी हों ॥४॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्त्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे अद्रिवः=अद्रिमन् महादण्डधर ! हे इन्द्र ! त्वम्। पूतम्=पवित्रम्। घृतं न=घृतमिव। इमं स्तोमम्=स्तोत्रम्। अभिष्टये=अभिमतसुखप्राप्तये गृहाणेति शेषः। येन स्तोमेन स्तूयमानस्त्वम्। नु=क्षिप्रम्। सद्यः=तत्काल एव। ओजसा=बलेन। ववक्षिथ। जगद् वहसि=प्रसादयसि ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रिवः) हे वज्रशक्तिमन् ! (घृतम्, न) जलमिव (पूतम्) पवित्रम् (इमम्, स्तोमम्) इमां स्तुतिम् (अभिष्टये) अभिमतप्राप्तये शृणोतु (येन) येन (नु) निश्चयम् (सद्यः) क्षिप्रम् (ओजसा) स्वपराक्रमेण (ववक्षिथ) स्तोतॄन् वहसि ॥४॥