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य॒दा सूर्य॑म॒मुं दि॒वि शु॒क्रं ज्योति॒रधा॑रयः । आदित्ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि येमिरे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yadā sūryam amuṁ divi śukraṁ jyotir adhārayaḥ | ād it te viśvā bhuvanāni yemire ||

पद पाठ

य॒दा । सूर्य॑म् । अ॒मुम् । दि॒वि । शु॒क्रम् । ज्योतिः॑ । अधा॑रयः । आत् । इत् । ते॒ । विश्वा॑ । भुव॑नानि । ये॒मि॒रे॒ ॥ ८.१२.३०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:12» मन्त्र:30 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:30


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शिव शंकर शर्मा

महिमा दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र परमैश्वर्य देव ! (यदा) जब तूने (दिवि) आकाश में (अमुम्) इस दूर में दृश्यमान (सूर्यम्) सूर्यरूप (शुक्रम्) शुद्ध देदीप्यमान (ज्योतिः) ज्योति को (अधारयः) स्थापित किया (आदित्) तब ही सम्पूर्ण भुवन नियमबद्ध हो गए ॥३०॥
भावार्थभाषाः - सूर्य की स्थापना से इस जगत् को अधिक लाभ पहुँच रहा है ॥३०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) जो आप (दिवि) द्युलोक में (शुक्रम्, ज्योतिः) निर्मल ज्योति (सूर्यम्) सूर्य को (अधारयः) धारण करते हो (आदित्) इसी से (विश्वा, भुवनानि) सम्पूर्ण लोक (येमिरे) नियमित रहते हैं ॥३०॥
भावार्थभाषाः - हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप द्युलोकस्थ सूर्य्य की विस्तृत निर्मल ज्योति को धारण कर रहे हैं, इसी कारण सब लोक-लोकान्तर नियमबद्ध हुए स्थित हैं, यह आपकी महान् शक्ति है, क्योंकि सूर्य्य के विना सम्पूर्ण प्रजाओं का स्थित रहना असम्भव है ॥३०॥
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शिव शंकर शर्मा

महिमानं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र परमदेव ! यदा त्वम्। दिवि=आकाशे। अमुम्=दूरे दृश्यमानम्। सूर्यम्=सूर्य्यरूपम्। शुक्रम्=शुद्धं देदीप्यमानं ज्योतिः। अधारयः स्थापयः स्थापितवान्। आदित्ते। सर्वं गतम् ॥३०॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (यदा) यत्र काले (दिवि) द्युलोके (अमुम्) एतम् (शुक्रम्, ज्योतिः) निर्मलं तेजः (सूर्यम्) सूर्यरूपम् (अधारयः) धारयसि (आदित्) अनन्तरमेव (विश्वा, भुवनानि) सर्वे लोकाः (येमिरे) नियताः ॥३०॥