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अध्व॑र्यवोऽरु॒णं दु॒ग्धमं॒शुं जु॒होत॑न वृष॒भाय॑ क्षिती॒नाम् । गौ॒राद्वेदी॑याँ अव॒पान॒मिन्द्रो॑ वि॒श्वाहेद्या॑ति सु॒तसो॑ममि॒च्छन् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adhvaryavo ruṇaṁ dugdham aṁśuṁ juhotana vṛṣabhāya kṣitīnām | gaurād vedīyām̐ avapānam indro viśvāhed yāti sutasomam icchan ||

पद पाठ

अध्व॑र्यवः । अ॒रु॒णम् । दु॒ग्धम् । अं॒शुम् । जु॒होत॑न । वृ॒ष॒भाय॑ । क्षि॒ती॒नाम् । गौ॒रात् । वेदी॑यान् । अ॒व॒ऽपान॑म् । इन्द्रः॑ । वि॒श्वाहा॑ । इत् । या॒ति॒ । सु॒तऽसो॑मम् । इ॒च्छन् ॥ ७.९८.१

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:98» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:6» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब उक्त परमात्मा सर्वशक्तिरूप से वर्णित किया जाता है।

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्यवः) हे ऋत्विग् ! आप लोग (क्षितीनां वृषभाय) जो इन सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों का स्वामी आनन्द की वृष्टि करनेवाला परमात्मा है, उसकी (जुहोतन) उपासना करें और (अरुणम्) आह्लादक पदार्थों से तथा (दुग्धम्) स्निग्ध द्रव्यों से (अंशुम्) ओषधियों के खण्डों से हवन करें और (वेदीयान्) वेदीगत (गौरात्) शुभ्र पदार्थों का (अवपानम्) पान करें, ऐसा करने से (इन्द्रः) परमैश्वर्यवाला विद्वान् (विश्वाहा) सर्वदा (सुतसोमम्, इच्छन्) सुन्दर शील की इच्छा करता हुआ अपने उच्च लक्ष्य को (याति) प्राप्त होता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे ऋत्विग् लोगों ! आप निखिल संसार के पति परमात्मा की उपासना करो और सुन्दर-सुन्दर पदार्थों से हवन करते हुए अपने स्वभाव को सौम्य बनाने की इच्छा करो। इस मन्त्र में परमात्मा ने सौम्य स्वभाव बनाने का उपदेश किया, अर्थात् जो विद्वान् शीलसम्पन्न होता है, वही अपने लक्ष्य को प्राप्त होता है, अन्य नहीं, इस भाव का यहाँ वर्णन किया गया ॥१॥
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आर्यमुनि

अथोक्तपरमात्मा सर्वशक्तिमत्त्वेन वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (अध्वर्यवः) हे ऋत्विजः ! यूयं (क्षितीनां वृषभाय) ब्रह्माण्डस्य सुखयित्रे (अरुणम्) तर्पणपदार्थैः (दुग्धम्) पयसा (अंशुम्) ओषधिखण्डैः (जुहोतन) जुहुत, तथा (वेदीयान्) वेदिगतान् (गौरात्) शुभ्रादपि शुभ्रतरान् पदार्थान् (अवपानम्) पिबत एवं हि (इन्द्रः) ऐश्वर्यशालिविद्वान् (विश्वाहा) सर्वदा (सुतसोमम्, इच्छन्) शोभनशीलं वाञ्छन् (याति) प्राप्नोति प्रोच्चपदम् ॥१॥