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ज॒नी॒यन्तो॒ न्वग्र॑वः पुत्री॒यन्त॑: सु॒दान॑वः । सर॑स्वन्तं हवामहे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

janīyanto nv agravaḥ putrīyantaḥ sudānavaḥ | sarasvantaṁ havāmahe ||

पद पाठ

ज॒नी॒यन्तः॑ । नु । अग्र॑वः । पु॒त्रि॒ऽयन्तः॑ । सु॒ऽदान॑वः । सर॑स्वन्तम् । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ ७.९६.४

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:96» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:20» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

अब उक्त विद्या के फलरूप ज्ञान का कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (जनीयन्तः) शुभ सन्तान की इच्छा करते हुये (पुत्रीयन्तः) पुत्रवाले होने की इच्छा करते हुए (सुदानवः) दानी लोग (अग्रवः) ब्रह्म की समीपता चाहनेवाले (नु) आज (सरस्वन्तम्) सरस्वती के पुत्ररूपी ज्ञान को (हवामहे) आवाहन करते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे पुरुषो ! तुम ब्रह्मज्ञान का आवाहन करो, जो विद्यारूपी सरस्वती माता से उत्पन्न होता है और सम्पूर्ण प्रकार के अनिष्टों को दूर करनेवाला है, परन्तु उसके पात्र वे पुरुष बनते हैं, जो उदारता के भाव और वेदरूपी विद्या के अधिकारी हों, अर्थात् जिनके मल-विक्षेपादि दोष सब दूर हो गये हों और यम-नियमादि सम्पन्न हों, वे ही ब्रह्मज्ञान के अधिकारी होते हैं, अन्य नहीं, या यों कहो कि जो अङ्ग और उपाङ्गों के साथ वेद का अध्ययन करते और यम-नियमादिसम्पन्न होते हैं ॥४॥
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आर्यमुनि

अथ उक्तब्रह्मविद्याफलरूपं ज्ञानं स्तूयते।

पदार्थान्वयभाषाः - (जनीयन्तः) शुभं कुटुम्बमिच्छन्तः (पुत्रीयन्तः) शुभसन्तानमिच्छन्तः (अग्रवः) ब्रह्मपदमिच्छन्तः (सुदानवः) सुदातारः वयम् (नु) अद्य (सरस्वन्तम्) सरस्वतीसुतं ज्ञानम् (हवामहे) आह्वयामः ॥४॥