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इन्द्रे॑ अ॒ग्ना नमो॑ बृ॒हत्सु॑वृ॒क्तिमेर॑यामहे । धि॒या धेना॑ अव॒स्यव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indre agnā namo bṛhat suvṛktim erayāmahe | dhiyā dhenā avasyavaḥ ||

पद पाठ

इन्द्रे॑ । अ॒ग्ना । नमः॑ । बृ॒हत् । सु॒ऽवृ॒क्तिम् । आ । ई॒र॒या॒म॒हे॒ । धि॒या । धेनाः॑ । अ॒व॒स्यवः॑ ॥ ७.९४.४

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:94» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:6» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हम (इन्द्रे) कर्मयोगी (अग्ना) और ज्ञानयोगी के लिए (नमः) नमस्कार करें और (बृहत्सुवृक्तिमेरयामहे) हम उनके साथ बड़ी नम्रतापूर्वक बर्ताव करें। (धिया धेनाः) अनुष्ठानरूप वाणी से हम उनसे (अवस्यवः) रक्षा की याचना करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो लोग विद्वानों के साथ रह कर अपनी वाणी को अनुष्ठानमयी बनाते हैं अर्थात् कर्मयोगी बन कर उक्त विद्वानों की सङ्गति करते हैं, वे संसार में सदैव सुरक्षित होते हैं ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रे) वयं कर्मयोगिनं (अग्ना) ज्ञानयोगिनं च (नमः) नमस्कुर्याम तथा (बृहत्सुवृक्तिमेरयामहे) ताभ्यां सह नम्रीभूय समाचरेम (धिया, धेनाः) अनुष्ठानरूपवाण्या (अवस्यवः) रक्षायै तौ याचेमहि च ॥४॥