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ताविद्दु॒:शंसं॒ मर्त्यं॒ दुर्वि॑द्वांसं रक्ष॒स्विन॑म् । आ॒भो॒गं हन्म॑ना हतमुद॒धिं हन्म॑ना हतम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tāv id duḥśaṁsam martyaṁ durvidvāṁsaṁ rakṣasvinam | ābhogaṁ hanmanā hatam udadhiṁ hanmanā hatam ||

पद पाठ

तौ । इत् । दुः॒ऽशंस॑म् । मर्त्य॑म् । दुःऽवि॑द्वांसम् । र॒क्ष॒स्विन॑म् । आ॒ऽभो॒गम् । हन्म॑ना । ह॒त॒म् । उ॒द॒ऽधिम् । हम॑ना । ह॒त॒म् ॥ ७.९४.१२

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:94» मन्त्र:12 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:18» मन्त्र:6 | मण्डल:7» अनुवाक:6» मन्त्र:12


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानों, आप (इद्दुःशंसं) दुष्ट पुरुषों को जो (दुर्विद्वासं) विद्या का दुरुपयोग करते हैं, उनको (रक्षस्विनं) जो राक्षसभावोंवाले हैं, (आभोगं) अन्य अधिकारियों से छीन कर जो स्वयं भोग करते हैं, (हन्मना) उनको अपनी विद्या से (हतम्) नाश करो, जिस प्रकार (उदधिम्) समुद्र विद्वानों की विद्या द्वारा (हन्मना, हतम्) यन्त्रों से मथा जाता है, इस प्रकार आप अपने विद्याबल से राक्षसों का दमन करो ॥१२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे विद्वानों ! आप राक्षसी वृत्तिवाले दुष्टाचारी पुरुषों का अपने विद्याबल से नाश करो, क्योंकि अन्यायकारी अधर्म्मात्माओं का दमन विद्याबल से किया जा सकता है, अन्यथा नहीं, अतः आप इस संसार में से पापपिशाच को विद्याबल से भगाओ ॥१२॥ यह ९४वाँ सूक्त और १८वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इद्दुःशंसम्) हे विद्वांसः ! दुष्टपुरुषान् (दुर्विद्वांसम्) वेदे दुरुपयोगं निरूपयतः (रक्षस्विनम्)   रक्षःस्वभावान् (आभोगम्) बलवदादाय परद्रव्यस्य भोक्तॄन् (हन्मना) स्वशस्त्रविद्यया (हतम्) नाशयत यथा (उदधिम्) समुद्रः (हन्मना) विद्वन्निर्मितयन्त्रेण (हतम्) मथ्यते तद्वत् ॥१२॥ इति चतुर्नवतितमं सूक्तमष्टादशो वर्गश्च समाप्तः ॥