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मो षु व॑रुण मृ॒न्मयं॑ गृ॒हं रा॑जन्न॒हं ग॑मम् । मृ॒ळा सु॑क्षत्र मृ॒ळय॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mo ṣu varuṇa mṛnmayaṁ gṛhaṁ rājann ahaṁ gamam | mṛḻā sukṣatra mṛḻaya ||

पद पाठ

मो इति॑ । सु । व॒रु॒ण॒ । मृ॒त्ऽमय॑म् । गृ॒हम् । रा॒ज॒न् । अ॒हम् । ग॒म॒म् । मृ॒ळ । सु॒ऽक्ष॒त्र॒ । मृ॒ळय॑ ॥ ७.८९.१

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:89» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब इस सूक्त में परमात्मा जीव को ऐश्वर्य्यप्राप्ति का उपदेश करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (वरुण) हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन् ! (मृन्मयं) मृत्तिका के (गृहं) घर आप हमको मत दें, (राजन्) हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन् ! हम मट्टी के गृहों में (मोषु) मत निवास करें, (मृळय) हे जगदीश्वर ! आप हम को सुख दें (सुक्षत्र) हे सबके रक्षक परमात्मन् ! (मृळय) आप हम पर सदैव दया करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ने उक्त ऐश्वर्य्य का उपदेश किया है कि हे जीवो ! तुम सदैव अपने जीवन के लक्ष्य को ऊँचा रक्खा करो और तुम यह प्रार्थना किया करो कि हम मट्टी के घरों में मत रहें, किन्तु हमारे रहने के स्थान अति मनोहर स्वर्णजटित सुन्दर हों तथा उनमें परमात्मा हमको सब प्रकार के ऐश्वर्य्य दें ॥१॥
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आर्यमुनि

अथास्मिन् एकोननवतितमे सूक्त ईश्वरो जीवार्थं ऐश्वर्य्यं निरूपयति।

पदार्थान्वयभाषाः - (वरुण) हे सर्वशक्तिमन् ! (मृन्मयम्) मृदानिर्मितं (गृहम्) गृहमस्मभ्यं मा दाः (राजन्) हे तेजोमय ! मृण्मये गृहे वयं (मोषु) मा वात्स्म (मृळय) अस्मान् सुखय (सुक्षत्र) हे सर्वरक्षक ! (मृळय) सर्वदास्मान् रक्ष ॥१॥