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पु॒नी॒षे वा॑मर॒क्षसं॑ मनी॒षां सोम॒मिन्द्रा॑य॒ वरु॑णाय॒ जुह्व॑त् । घृ॒तप्र॑तीकामु॒षसं॒ न दे॒वीं ता नो॒ याम॑न्नुरुष्यताम॒भीके॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

punīṣe vām arakṣasam manīṣāṁ somam indrāya varuṇāya juhvat | ghṛtapratīkām uṣasaṁ na devīṁ tā no yāmann uruṣyatām abhīke ||

पद पाठ

पु॒नी॒षे । वा॒म् । अ॒र॒क्षस॑म् । म॒नी॒षाम् । सोम॑म् । इन्द्रा॑य । वरु॑णा॒य । जुह्व॑त् । घृ॒तऽप्र॑तीकाम् । उ॒षस॑म् । न । दे॒वीम् । ता । नः॒ । याम॑न् । उ॒रु॒ष्य॒ता॒म् । अ॒भीके॑ ॥ ७.८५.१

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:85» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब राजधर्म का वर्णन करते हुए सैनिक पुरुषों के सहायार्थ सोमादि द्रव्यों का प्रदान कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यों ! तुम (अभीके) इस धर्मयुद्ध में (इन्द्रस्य, वरुणस्य) इन्द्र तथा वरुण के लिए (सोमं, जुह्वत्) सोमरसप्रदान करके यह कथन करो कि (वां) आपको (अरक्षसं) आसुरभावरहित (घृतप्रतीकां) घृत के समान स्नेहवाली (मनीषां) बुद्धि द्वारा प्रार्थना करके (पुनीषे) पवित्र करे, (उषसं) उषा के (न) समान (देवीं) दिव्यरूपा (ता) बुद्धि द्वारा (यामन्) युद्ध की चढ़ाई के समय (नः) हमको (उरुष्यतां) सेवन करे ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे प्रजाजनों ! तुम इन्द्र=परमैश्वर्य्ययुक्त शूरवीर तथा वरुण=शत्रुसेना को शस्त्रों द्वारा आच्छादन करनेवाले वीर पुरुषों का सोमादि उत्तमोत्तम पदार्थों से सत्कार करके उन्हें प्रसन्न करते हुए अपनी स्नेहपूर्ण शुद्ध बुद्धि द्वारा सदैव उनकी रक्षा के लिए प्रार्थना करो, जिससे वे शत्रुओं का पराजय करके तुम्हारे लिए सुखदायी हों। तुम युद्ध में चढ़ाई के समय उनके सहायक बनो और उनको सदा प्रेम की दृष्टि से देखो, क्योंकि जहाँ प्रजा-राजपुरुषों में परस्पर प्रेम होता है, वहाँ सदैव आनन्द बना रहता है, इसलिए तुम दोनों परस्पर प्रेम की वृद्धि करो ॥१॥
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आर्यमुनि

अथ राजधर्म्ममुपदिशन् सैनिकसाहाय्यं वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - भो मनुष्याः ! यूयम् (अभीके) अत्र धर्म्ये युद्धे (इन्द्रस्य, वरुणस्य) इन्द्रवरुणसम्बन्धि च (सोमं जुह्वत्) सोमाख्यं हविर्ददतः इदं प्रार्थयध्वम् यत् (वाम्) युवयोः (अरक्षसम्) आसुरभावं त्यक्त्वा (घृतप्रतीकाम्) घृतसदृशस्निग्धया (मनीषाम्) बुद्ध्या प्रार्थनां कृत्वा (पुनीषे) पुनातु (उषसम्) उषसा (न) सदृश्या (देवीम्) दिव्यस्वरूपया (ता) तया बुद्ध्या (यामन्) युद्धाभिगमे (नः) अस्मान् (उरुष्यताम्) सेवेताम् ॥१॥