पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रावरुणा) हे अग्नि तथा जलविद्यावेत्ता विद्वानों ! तुम लोग (मज्मना) अपने आत्मिक बल से (विश्वा, जातानि) सम्पूर्ण विश्व के अनुभव द्वारा (क्षेमेण) कुशलपूर्वक (भुवनस्य) संसार की रक्षा करो, (यत्) जो (इमानि, चक्रथुः) यह युद्धविद्याविषयक कार्य्य करते हो, वह (मित्रः) संसार को सुखकारक हो और (वरुणं) सबको आच्छादन करनेवाली जलमय वायु को (दुवस्यति) दूर करके (उग्रः) युद्धविद्या में निपुण सैनिक पुरुष (मरुद्भिः) आकाशमण्डल में फैलनेवाली वायुओं द्वारा शत्रुओं को जीतें, (अन्यः) अन्य सैनिक पुरुष (शुभं) शुभ साधनों द्वारा शत्रु को (ईयते) प्राप्त हों अर्थात् उसके सम्मुख जायें ॥५॥
भावार्थभाषाः - हे आग्नेय तथा तथा जलीय अस्त्र-शस्त्रों के वेत्ता विद्वानों ! तुम लोग अपने अनुभव द्वारा राज्यविरोधी शत्रुओं को विजय करके सम्पूर्ण संसार की रक्षा करो, तुम कलाकौशल के ज्ञान द्वारा युद्धविषयक अस्त्र- शस्त्र निर्माण करो और ऐसे अस्त्रों का प्रयोग करो, जो आकाशमण्डल में फैल जानेवाली वायुओं द्वारा शत्रु का विजय करें अर्थात् प्रबल शत्रु को आग्नेयास्त्र तथा वारुणास्त्र द्वारा विजय करो और साधारण शत्रु को शुभ साधनों से अपने वश में करो, जिससे उसको घोर कष्ट न हो ॥५॥