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उ॒च्छन्ती॒ या कृ॒णोषि॑ मं॒हना॑ महि प्र॒ख्यै दे॑वि॒ स्व॑र्दृ॒शे । तस्या॑स्ते रत्न॒भाज॑ ईमहे व॒यं स्याम॑ मा॒तुर्न सू॒नव॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ucchantī yā kṛṇoṣi maṁhanā mahi prakhyai devi svar dṛśe | tasyās te ratnabhāja īmahe vayaṁ syāma mātur na sūnavaḥ ||

पद पाठ

उ॒च्छन्ती॑ । या । कृ॒णोषि॑ । मं॒हना॑ । म॒हि॒ । प्र॒ऽख्यै । दे॒वि॒ । स्वः॑ । दृ॒शे । तस्याः॑ । ते॒ । र॒त्न॒ऽभाजः॑ । ई॒म॒हे॒ । व॒यम् । स्याम॑ । मा॒तुः । न । सू॒नवः॑ ॥ ७.८१.४

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:81» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:6» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवि) हे दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! (दृशे) विज्ञानियों के ज्ञानगोचर (या) जो आप (स्वः, प्रख्यै) अपनी ख्याति के लिए (मंहना) स्वमहिमा से (महि, कृणोषि) जगत् को रचकर (उच्छन्ती) अज्ञानरूप अन्धकार का नाश करके अपने तेजोमय ज्ञान का प्रकाश करते हो, (वयं) हम लोग (मातुः) माता के (सूनवः) बच्चों के (न) समान (स्याम) हों और (तस्याः) पुर्वोक्तगुणसम्पन्न (ते) तुम्हारी (ईमहे) उपासना करते हुए (रत्नभाजः) रत्नों के पात्र बनें ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे परमपिता परमात्मन् ! आपको ज्ञान द्वारा विज्ञानी पुरुष ही उपलब्ध कर सकते हैं, साधारण पुरुष नहीं।  हे दिव्यस्वरूप भगवन् ! आप हमारे ज्ञानार्थ ही अपनी अपूर्व सामर्थ्य से जगत् की रचना करते हैं। आप माता के समान हम पर प्यार करते हुए हमारी सब प्रकार से रक्षा करें और हमें ज्ञानसम्पन्न करके अपनी उपासना का अधिकारी बनावें, ताकि हम आपके अनुग्रह से धन-धान्य से भरपूर हों ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवि) हे दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! (दृशे) विज्ञानिज्ञानगोचरः (या) यो भवान् (स्वः, प्रख्यै) स्वख्यातये (मंहना) स्वमहिम्ना (महि, कृणोषि) जगन्निर्माय (उच्छन्ती) अज्ञानात्मकतमो निरस्य स्वतेजोमयज्ञानं प्रकाशयति (वयम्) वयं (मातुः) जनन्याः (सूनवः) सुताः (न) इव (स्याम) भवेम, तथा च (तस्याः) उक्तगुणसम्पन्नायाः (ते) तव (ईमहे) उपासनायाः कर्तारः (रत्नभाजः) रत्नपात्राणि भवेम ॥४॥