पदार्थान्वयभाषाः - (वनन्वति) हे सर्वभजनीय परमात्मन् ! (दिवः, दुहितः, उषः) द्युलोक की दुहिता उषा के द्वारा (जीराः) शीघ्र ही (त्वा, प्रति) आपको (अभुत्स्महि) भलेप्रकार जानें और (या) जो आप (पुरु, स्पार्हम्, वहसि) बहुत धन सबको प्राप्त कराते और (दाशुषे) यजमान के लिए (रत्नं) रत्न (मयः) और सुख देते हैं, (न) उसी के समान हमें भी प्रदान करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे ज्योतिःस्वरूप परमात्मदेव ! आप ऐसी कृपा करें कि हम उषःकाल में अनुष्ठान करते हुए आपके समीप हों, आप ही सब सांसारिक रत्नादि ऐश्वर्य्य तथा आत्मसुख देनेवाले हैं, कृपा करके हमको भी अपने प्रिय यजमानों के समान अभ्युदय और निःश्रेयसरूप दोनों प्रकार के सुखों को प्राप्त करायें। यहाँ मन्त्र में “मयः” शब्द से आध्यात्मिक आनन्द का ग्रहण है, जैसा कि “नमः शम्भवाय च मयोभवाय च” इत्यादि मन्त्रों में वर्णन किया है, इसी आनन्द की यहाँ परमात्मा से प्रार्थना की गई है ॥३॥