पदार्थान्वयभाषाः - (उषः देवि) हे ज्योतिस्वरूप तथा दिव्यगुणसम्पन्न परमेश्वर ! (अस्मे) हमें (श्रेष्ठेभिः भानुभिः) सुन्दर प्रकाशों से (विभाहि) भले प्रकार प्रकाशयुक्त करें, (नः) हमारी (आयुः प्रतिरन्ती) आयु को बढ़ावें, (विश्ववारे) हे विश्व के उपास्यदेव ! (नः) हमें (इषं) ऐश्वर्य्य (दधती) धारण करावें (च) और (गोमत्) गौओं से युक्त (अश्ववत्) अश्वोंवाला (रथवत्) यानोंवाला (च) और (राधः) सम्पूर्ण धनोंवाला करें ॥५॥
भावार्थभाषाः - मन्त्र का भाव स्पष्ट है। इसमें यह वर्णन किया है कि हे परमात्मन् ! आप हमें दीर्घ आयु दें और सब प्रकार के ऐश्वर्य्य से सम्पन्न करें ॥ इस मन्त्र में आयु की प्रार्थना करना इस बात को सिद्ध करता है कि सब प्रकार के ऐश्वर्य्यों में आयु मुख्य है, क्योंकि आयु के बिना मनुष्य ऐश्वर्य्य का भोग नहीं कर सकता, इसी अभिप्राय से “जीवेम शरदः शतं” इस मन्त्र में सौ वर्ष तक जीवन धारण करने की प्रार्थना की गई है अर्थात् साधारण आयु सौ वर्ष पर्य्यन्त है। इसी मन्त्र में आगे “शरदः शतात्” सौ वर्ष से अधिक जीवन की प्रार्थना भी है, जिसका तात्पर्य्य यह है कि पुरुष योगसम्पन्न तथा सदाचारयुक्त हुआ सौ वर्ष से अधिक भी जीवन धारण कर सकता है, परन्तु यह अवस्था असाधारण है, प्रत्येक को प्राप्त नहीं हो सकती, इसी अभिप्राय से वेद में परमात्मा ने सौ वर्ष का नियम रखा है। सारांश यह है कि जितना पुरुष ब्रह्मचारी तथा सदाचारी रहेगा, उतनी ही उसकी आयु विशेष होगी और जितना अधिक दुराचार में प्रवृत्त रहेगा, उतनी ही आयु कम होगी, जैसा कि वर्त्तमानावस्था में प्रत्यक्ष देखा जाता है, अत एव सिद्ध है कि ऐश्वर्य्य भोगने के लिए आयु का होना आवश्वक है और आयु बढ़ाने के लिए एकमात्र सदाचार का अवलम्बन करना मनुष्यमात्र का कर्त्तव्य है, यह वेदभगवान् का उपदेश है ॥५॥