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देवता: उषाः ऋषि: वसिष्ठः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

उपो॑ रुरुचे युव॒तिर्न योषा॒ विश्वं॑ जी॒वं प्र॑सु॒वन्ती॑ च॒रायै॑ । अभू॑द॒ग्निः स॒मिधे॒ मानु॑षाणा॒मक॒र्ज्योति॒र्बाध॑माना॒ तमां॑सि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

upo ruruce yuvatir na yoṣā viśvaṁ jīvam prasuvantī carāyai | abhūd agniḥ samidhe mānuṣāṇām akar jyotir bādhamānā tamāṁsi ||

पद पाठ

उपो॒ इति॑ । रु॒रु॒चे॒ । यु॒व॒तिः । न । योषा॑ । विश्व॑म् । जी॒वम् । प्र॒ऽसु॒वन्ती॑ । च॒रायै॑ । अभू॑त् । अ॒ग्निः । स॒म्ऽइधे॑ । मानु॑षाणाम् । अकः॑ । ज्योतिः॑ । बाध॑माना । तमां॑सि ॥ ७.७७.१

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:77» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:24» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब परमात्मा को चराचर जीवों की जननी रूप से कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (तमांसि) अज्ञानरूप तम को (बाधमाना) नाश करती हुई (अग्निः ज्योतिः) प्रकाशस्वरूप ज्योति (मानुषाणां समिधे अकः) मनुष्यों के सम्बन्ध में प्रकट हुई, जिसने (प्रसुवन्ती) प्रसूतावस्था में (विश्वं चरायै जीवं) विश्व के चराचर जीवों को (अभूत्) प्रकट किया, वह ज्योति (उपो) इस संसार में (युवतिः) युवावस्थावाली (रुरुचे) प्रकाशित हुई, (न योषा) स्त्री के समान नहीं ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा को ज्योतिरूप से वर्णन किया गया है अर्थात् जगज्जननी ज्योतिरूप परमात्मा, जो जीवमात्र का जन्मदाता है, उसने आदि सृष्टि में विश्व के चराचर जीवों को युवावस्था में प्रकट किया और वह परमात्मरूप शक्ति भी युवावस्था में प्रकट हुई स्त्री के समान नहीं ॥ इस मन्त्र में जीव शब्द स्पष्ट आया है, जिसके अर्थ चराचर प्राणधारी जीव के हैं, शुद्धचेतन के नहीं, क्योंकि शुद्धचेतनरूप जीव न कभी मरता और न उत्पन्न होता है, वह अनादि अनन्त सदा एकरस रहता है। इसका वर्णन “द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया” ऋ० १।१६४।२०। इत्यादि मन्त्रों में स्पष्ट वर्णित है ॥१॥
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आर्यमुनि

अथ परमात्मा चराचरस्य जननीरूपेण वर्ण्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (तमांसि) अज्ञानात्मकं तमः (बाधमाना) नाशयत् (अग्निः ज्योतिः) प्रकाशस्वरूपज्योतिः (मानुषाणाम् समिधे अकः) मनुष्याणां सम्बन्धेऽजनिष्ट, येन (प्रसुवन्ती) प्रसूतावस्थायां (विश्वम् चरायै जीवम्) सांसारिकचराचरजीवाः (अभूत्) आविश्चक्रिरे, तज्ज्योतिः (उपो) अस्मिन्विश्वे (युवतिः) यौवनसम्पन्नं (रुरुचे) प्रादुरभूत् (न योषा) न च स्त्रीतुल्या ॥१॥