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वा॒जिनी॑वती॒ सूर्य॑स्य॒ योषा॑ चि॒त्राम॑घा रा॒य ई॑शे॒ वसू॑नाम् । ऋषि॑ष्टुता ज॒रय॑न्ती म॒घोन्यु॒षा उ॑च्छति॒ वह्नि॑भिर्गृणा॒ना ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vājinīvatī sūryasya yoṣā citrāmaghā rāya īśe vasūnām | ṛṣiṣṭutā jarayantī maghony uṣā ucchati vahnibhir gṛṇānā ||

पद पाठ

वा॒जिनी॑ऽवती । सूर्य॑स्य । योषा॑ । चि॒त्रऽम॑घा । रा॒यः । ई॒शे॒ । वसू॑नाम् । ऋषि॑ऽस्तुता । ज॒रय॑न्ती । म॒घोनी॑ । उ॒षाः । उ॒च्छ॒ति॒ । वह्नि॑ऽभिः । गृ॒णा॒ना ॥ ७.७५.५

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:75» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:22» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:5» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

अब उषा को अन्नादि ऐश्वर्य्य की देनेवाली कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (उषाः) यह उषा देवी (वाजिनीवती) अन्नादि पदार्थों के देनेवाली (चित्रामघा) नाना प्रकार के ऐश्वर्य्यवाली (वसूनां रायः ईशे) वसुओं के धन की स्वामिनी (मघोनी) ऐश्वर्य्यवाली (वह्निभिः) याज्ञिक कर्मों में प्रेरक (ऋषिस्तुता) ऋषियों द्वारा स्तुति को प्राप्त और (उच्छति) प्रकाश को प्राप्त होकर (जरयन्ती) अन्धकारादि दोषों को निवृत्त करती हुई (सूर्यस्य योषा) सूर्य्य के स्त्रीभाव को (गृणाना) ग्रहण करती है ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में रूपकालङ्कार से उषा को सूर्य्य की स्त्री वर्णन किया गया है, जिसका तात्पर्य यह है कि प्रातःकाल पूर्वदिशा में जो रक्तवर्ण की दीप्ति सूर्योदय के समय उत्पन्न होती है, उसका नाम “उषा” है। द्युलोक उसका पितास्थानीय और सूर्य्य पतिस्थानीय माना गया है, क्योंकि वह द्युलोक में उत्पन्न होती और सूर्य्य उसका भोक्ता होने के कारण उसको पतिरूप से वर्णन किया गया है, या यों कहो कि सूर्य्य की रश्मिरूप उषा सूर्य्य की शोभा को बढ़ाती और सदैव उसके साथ रहने के कारण उसको योषारूप से वर्णन किया गया है और जो कई एक मन्त्रों में उषा को सूर्य्य की पुत्री वर्णन किया गया है, वह द्युलोक के भाव से है, सूर्य्य के अभिप्राय से नहीं ॥ तात्पर्य यह है कि यही “उषा” अन्नादि सब धनों के देनेवाली है, क्योंकि यही अन्धकार को दूर करके सब मनुष्यों को अपने-अपने काम में लगाती और यज्ञादि शुभ कार्य्य करने के लिए प्रेरणा करती है। ऋषि लोग प्रातःकाल में इसकी स्तुति करते हुए यज्ञादि कार्य्यों में प्रवृत्त होते और “सहस्रशीर्षादि” यजु० ३२।२॥ मन्त्रों में परमात्मा के विराट् स्वरूप का वर्णन करते हुए सर्व ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं, इसीलिए यहाँ उषा को विशेषरूप से वर्णन किया गया है ॥५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उषाः) उषा देवी अन्नादिपदार्थप्रदा (चित्रामघा) ऐश्वर्य्यवती (वसूनां रायः ईशे) सर्वस्वामिनी (वह्निभिः) स्वतेजोभिः (ऋषिष्टुता) ऋषिभिरीड्या (उच्छति) प्रकाशवती (जरयन्ती) तमांसि निवर्त्तयन् (सूर्यस्य योषा) आदित्यस्य स्त्रीभावं (गृणाना) गृह्णातीत्यर्थः ॥५॥