पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे विद्वज्जनों ! (रथेन वामम् उपायातं) अपने आभावाले शीघ्रगामी यानों द्वारा हमें प्राप्त होकर (मर्त्याय दाशुषे) हम यजमानों की मनःकामना (वहन्ता) पूर्ण करते हुए (अस्मत्) हमसे (अनिराम् अमीवां) दरिद्रता तथा सब प्रकार के रोगों को (युयुतं) पृथक् करो और (माध्वी) हे मधुरभाषी विद्वानों ! (नक्तं दिवा) रात्रि-दिन (नः) हमारी (त्रासीथां) सब ओर से रक्षा करो ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे प्रजाजनों ! तुम उन विद्वानों से प्रार्थना करो कि हे भगवन् ! आप हमें प्राप्त होकर हमको वह उपाय बतलावें, जिससे हमारी दरिद्रता दूर हो हमारा शरीर नीरोग रहे, हम मधुरभाषी हों और ईर्ष्या-द्वेष से सर्वथा पृथक् रहें अर्थात् अपनी चिकित्सारूप विद्या द्वारा हमको नीरोग करके ऐसे साधन बतलावें, जिससे हम रोगी कभी न हों और पदार्थविद्या के उपदेश द्वारा हमें कला-कौशलरूप ज्ञान का उपदेश करें, जिससे हमारी दरिद्रता दूर हो। हम ऐश्वर्य्यशाली हों और साथ ही हमें आत्मज्ञान का भी उपदेश करें, जिससे हमारा आत्मा पवित्र भावों में परिणत होकर आपकी आज्ञा का सदैव पालन करनेवाला हो ॥२॥