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च॒नि॒ष्टं दे॑वा॒ ओष॑धीष्व॒प्सु यद्यो॒ग्या अ॒श्नवै॑थे॒ ऋषी॑णाम् । पु॒रूणि॒ रत्ना॒ दध॑तौ॒ न्य१॒॑स्मे अनु॒ पूर्वा॑णि चख्यथुर्यु॒गानि॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

caniṣṭaṁ devā oṣadhīṣv apsu yad yogyā aśnavaithe ṛṣīṇām | purūṇi ratnā dadhatau ny asme anu pūrvāṇi cakhyathur yugāni ||

पद पाठ

च॒नि॒ष्टम् । दे॒वौ॒ । ओष॑धीषु । अ॒प्ऽसु । यत् । यो॒ग्याः । अ॒श्नवै॑थे॒ इति॑ । ऋषी॑णाम् । पु॒रूणि॑ । रत्ना॑ । दध॑तौ । नि । अ॒स्मे इति॑ । अनु॑ । पूर्वा॑णि । च॒ख्य॒थुः॒ । यु॒गानि॑ ॥ ७.७०.४

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:70» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:17» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (चनिष्टम्, देवा) हे योग्य विद्वान् पुरुषो ! (ओषधीषु, अप्सु) ओषधियों तथा जलों में (ऋषीणां) ऋषियों के तात्पर्य्य को (यत्) जो (अश्नवैथे) जानते हो, वह (नि) निश्चय करके हमारे प्रति कहो, क्योंकि आप (योग्याः) सब प्रकार से योग्य हैं। (अस्मे) हमारे लिए (पुरूणि, रत्ना) अनेक प्रकार के रत्न (दधतौ) धारण कराओ, जिनको (अनु, पूर्वाणि, युगानि) पूर्वकालिक सब विद्वानों ने (चख्यथुः) कथन किया है ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे याज्ञिक लोगो ! तुम उन ज्ञानी तथा विज्ञानी विद्वानों से यह प्रार्थना करो कि आप सब प्रकार की विद्याओं में कुशल हो, इसलिए ओषधियों तथा जलीय विद्यासम्बन्धी ऋषियों के अभिप्राय को हमारे प्रति कहो और जो प्राचीन रसायनविद्यावेत्ता विद्वानों ने रत्नादि निधियों को निकाला है, उनका ज्ञान भी हमें कराओ अर्थात् पदार्थविद्या के जाननेवाले ऋषियों के तात्पर्य्य को समझकर हमें निधिपति बनाओ ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (चनिष्टम्, देवा) हे योग्यविद्वांसः ! यूयं (ओषधीषु, अप्सु) ओषधीषु जलेषु च (ऋषीणाम्) मुनीनां (यत्) यानि तात्पर्य्यानि (अश्नवैथे) ज्ञायध्वे, तानि (नि) निश्चयेन अस्मान्प्रति कथयेत, यतो यूयं (योग्या) योग्याः स्थ, (अस्मे) मह्यं (पुरूणि, रत्ना) अमूल्यानि रत्नानि (दधतौ) धारयत, यानि रत्नानि (अनु, पूर्वाणि, युगानि) पूर्वकालिकाः सर्वे विद्वांसः (चख्यथुः) अचकथन् ॥४॥