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यु॒वं भु॒ज्युमव॑विद्धं समु॒द्र उदू॑हथु॒रर्ण॑सो॒ अस्रि॑धानैः । प॒त॒त्रिभि॑रश्र॒मैर॑व्य॒थिभि॑र्दं॒सना॑भिरश्विना पा॒रय॑न्ता ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yuvam bhujyum avaviddhaṁ samudra ud ūhathur arṇaso asridhānaiḥ | patatribhir aśramair avyathibhir daṁsanābhir aśvinā pārayantā ||

पद पाठ

यु॒वम् । भु॒ज्युम् । अव॑ऽविद्धम् । स॒मु॒द्रे । उत् । ऊ॒ह॒थुः॒ । अर्ण॑सः । अस्रि॑धानैः । प॒त॒त्रिऽभिः॑ । अ॒श्र॒मैः । अ॒व्य॒थिऽभिः॑ । दं॒सना॑भिः । अ॒श्वि॒ना॒ । पा॒रय॑न्ता ॥ ७.६९.७

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:69» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:16» मन्त्र:7 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे शूरवीर राजपुरुषो ! (समुद्रे, अवविद्धम्) समुद्र में गिरे हुए (युवं, भुज्युम्) अपने युवा सम्राट् को (अस्रिधानैः, पतत्रिभिः) न डूबनेवाले जहाजों (उत) और (अव्यथिभिः, दंसनाभिः, अश्रमैः) अपने अनथक शारीरिक परिश्रमों द्वारा (अर्णासः) जलप्रवाहों से (ऊहथुः) निकालकर (पारयन्ता) पार करो ॥७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे शूरवीर राजपुरुषो ! तुम्हारी राज्यरूप श्री का भुज्यु=भोक्ता सम्राट् समुद्र में स्थित है अर्थात् “समुद्द्रवन्त्यस्मादापः स समुद्रः”=जिसमें भले प्रकार जल भरे हुए हों अथवा जो जलों का धारण करनेवाला हो, उसको “समुद्र” कहते हैं। इस व्युत्पत्ति से सागर तथा आकाश दोनों अर्थों में समुद्र शब्द प्रयुक्त होता है, जिसके अर्थ ये हैं कि हे शूरवीर राजपुरुषो ! तुम्हारे राज्य की श्री जो युवावस्था को प्राप्त अर्थात् चमकती हुई दोनों समुद्रों के मध्य विराजमान है, तुम लोग उसको जल की यात्रा करनेवाले जहाजों द्वारा अथवा आकाश की यात्रा करनेवाले विमानों द्वारा निकालो। तात्पर्य्य यह है कि उत्तम  यन्त्रों द्वारा जलीय समुद्र की भली-भाँति यात्रा करनेवाले अथवा आकाशरूप  समुद्र में गति करनेवाले योद्धा पुरुष ही उस श्री को समुद्र से निकालकर ऐश्वर्य्यसम्पन्न हुए सुख भोग करते हैं, अन्य नहीं। वास्तव में भुज्यु के अर्थ सांसारिक श्रीभोक्ता सम्राट् के हैं, जिसके भाव को अल्पदर्शी टीकाकारों ने न समझकर ये अर्थ किये हैं कि कोई भुज्यु नामक पुरुष समुद्र में गिर गया था, उसके निकालने के लिए अश्विनीकुमारों से प्रार्थना की कि हे अश्विनीकुमारो ! तुम इसको किसी प्रकार निकालो। यह अर्थ वेदाशय से सर्वथा विरुद्ध है, जिसका समाधान पीछे भी कर आये हैं, क्योंकि यहाँ न किसी भुज्यु नामक पुरुष का वर्णन है और नाहीं किसी इतिहास में भुज्यु नाम के पुरुष का लेख है। यह भुज्यु गुणप्रधान नाम है, व्यक्तिप्रधान नहीं, जैसा कि इस सूक्त के उपक्रम और उपसंहार से प्रतीत होता है ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे शौर्यशालिनो राजपुरुषाः ! (समुद्रे) उदधौ (अवविद्धम्) मग्नं (युवम्) युष्माकं (भुज्युम्) राजानं (अस्रिधानैः, पतत्रिभिः) अनुन्मग्नैर्जलयानैः (अव्यथिभिः, दंसनाभिः, अश्रमैः) स्वकीयापूर्वशारीरिकपरिश्रमैः (उत) च (अर्णासः) जलप्रवाहात् (ऊहथुः) समुत्थाप्य (पारयन्ता) सन्तारयत ॥७॥