वांछित मन्त्र चुनें

एक॑स्मि॒न्योगे॑ भुरणा समा॒ने परि॑ वां स॒प्त स्र॒वतो॒ रथो॑ गात् । न वा॑यन्ति सु॒भ्वो॑ दे॒वयु॑क्ता॒ ये वां॑ धू॒र्षु त॒रण॑यो॒ वह॑न्ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ekasmin yoge bhuraṇā samāne pari vāṁ sapta sravato ratho gāt | na vāyanti subhvo devayuktā ye vāṁ dhūrṣu taraṇayo vahanti ||

पद पाठ

एक॑स्मिन् । योगे॑ । भु॒र॒णा॒ । स॒मा॒ने । परि॑ । वाम् । स॒प्त । स्र॒वतः॑ । रथः॑ । गा॒त् । न । वा॒य॒न्ति॒ । सु॒ऽभ्वः॑ । दे॒वऽयु॑क्ताः । ये । वा॒म् । धूः॒ऽसु । त॒रण॑यः । वह॑न्ति ॥ ७.६७.८

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:67» मन्त्र:8 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वां) हे देव तथा मनुष्यो ! (भुरणा, समाने) मनुष्यमात्र के लिए समान (एकस्मिन्, योगे) एक योग में (सप्त, स्रवतः) ज्ञानेन्द्रियों के सात प्रवाह (रथः, गात्) उस मार्ग को प्राप्त कराते हैं, (ये) जो (परि) सब ओर से परिपूर्ण हैं (वां) तुम दोनों के (धूर्षु) धुराओं में लगे हुए (तरणयः) युवावस्था को प्राप्त (देवयुक्ताः) परमात्मा में युक्त (सुभ्वः) दृढतावाले (वायन्ति न) थकित न होनेवाले उस मार्ग में (वहन्ति) चलाते अर्थात् उस मार्ग को प्राप्त कराते हैं ॥८॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे दिव्यशक्तिसम्पन्न विद्वानों तथा साधारण मनुष्यो ! तुम दोनों के लिए योग=परमात्मस्वरूप में जुड़ना समान है अर्थात् देव, साधारण तथा प्राकृत जन सभी उसको प्राप्त हो सकते हैं, वह एक सब का उपास्यदेव है, उसकी प्राप्ति के लिये बड़े दृढ सात साधन हैं, जिनके संयम द्वारा पुरुष उस योग को प्राप्त हो सकता है। वे सात इस प्रकार हैं, पाँच ज्ञानेन्द्रिय जिनसे जीवात्मा बाह्य जगत् के ज्ञान को उपलब्ध करता अर्थात् संसार की रचना देखकर परमात्मसत्ता का अनुमान करता है, मन से मनन करता और सदसद्विवेचन करनेवाली बुद्धि से परमात्मा का निश्चय करता है, इनमें श्रोत्रेन्द्रिय, मन तथा बुद्धि, ये तीनों परमात्मप्राप्ति में अन्तरङ्गसाधन हैं, इसी अभिप्राय से उपनिषदों में वर्णन किया है कि “आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः।” वह परमात्मा श्रवण, मनन तथा निदिध्यासन करने योग्य है। वेदवाक्यों द्वारा परमात्मविषयक सुनने का नाम “श्रवण”, सुने हुए अर्थ को युक्तियों द्वारा मन से विचारने का नाम “मनन” और उस मनन किये हुए को निश्चित बुद्धि द्वारा धारण करने का नाम “निदिध्यासन” है। तीन ये और चार अन्य सातों ही देव का समीपी बनाते हैं, जो सबका उपास्य है ॥८॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वां) देवमनुष्ययोः (भुरणा) प्राणिमात्रस्य रक्षित्रोर्युवयोः (एकस्मिन्, योगे) एकस्मिन् स्थाने (स्रवतः) ज्ञानेन्द्रियप्रवाहस्य (सप्त) सप्त वृत्तयः परिस्रवन्ति किञ्च, (वां) युवयोः (धूर्षु) नाभिषु प्रोताः (तरणयः) शीघ्रगामिन्यः (देवयुक्ताः) परमात्मविषयिण्यः (सुभ्वः) साध्व्यः (न, वायन्ति) न ग्लायन्ति, अन्यच्च (ये) या वृत्तयः (समाने) समाहिते (परि, गात्) गच्छन्ति ताः (रथम्) ज्ञानं (वहन्ति) जनयन्ति ॥८॥