अब ऐश्वर्य्यप्राप्ति के लिये शुभ बुद्धि की प्रार्थना करते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (शचीपती) हे कर्मों के स्वामी (देवा) परमात्मदेव ! (शचीभिः) अपनी दिव्य शक्ति द्वारा (नः) हमको (शक्तं) सामर्थ्य दें, ताकि हम (ता) उस (पुरन्धीः) शुभ बुद्धि को (आ) भले प्रकार प्राप्त होकर (विश्वाः, वाजे) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य के स्वामी हों, (अश्विना) परमात्मदेव ! (अविष्टं) अपने से सुरक्षित (मे) मुझे (ऊं) विशेषतया (सातये, वसूयुं, कृतं) ऐश्वर्य्य तथा धनादि की प्राप्ति में कृतकार्य्य होने के लिए (प्राचीं, अमृध्रां) सरल और हिंसारहित (धियं) बुद्धि प्रदान करें ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में जगत्पिता परमात्मदेव से यह प्रार्थना की गई है कि हे भगवन् ! आप हमारी सब प्रकार से रक्षा करते हुए अपनी दिव्यशक्ति द्वारा हमको सामर्थ्य दें कि हम उस शुभ, सरल तथा निष्कपट बुद्धि को प्राप्त होकर ऐश्वर्य्य तथा सब प्रकार के धनों का सम्पादन करें, या यों कहो कि हे कर्मों के अधिपति परमात्मन् ! आप हमको कर्मानुष्ठान द्वारा ऐसी शक्ति प्रदान करें, जिससे हम साधनसम्पन्न होकर उस बुद्धि को प्राप्त हों, जो धन तथा ऐश्वर्य्य के देनेवाली है अथवा जिसके सम्पादन करने से ऐश्वर्य्य मिलता है ॥ प्रार्थना से तात्पर्य्य यह है कि पुरुष अपनी न्यूनता अनुभव करता हुआ शुभ कर्मों की ओर प्रवृत्त हो और शुभकर्मी को परमात्मा सब प्रकार का ऐश्वर्य्य प्रदान करते हैं, क्योंकि वह कर्माध्यक्ष है, जैसा कि अन्यत्र भी कहा है कि ”कर्माध्यक्ष: सर्वभूताधिवास: साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च” ॥ श्वे० ६।११॥ वह परमात्मा कर्मों का अध्यक्ष=स्वामी, सब भूतों का निवासस्थान, साक्षी और निर्गुण=प्राकृत गुणों से रहित है, इत्यादि गुणसम्पन्न परमात्मा से प्रार्थना की गई है कि वह देव हमें शुभ कर्मों की ओर प्रेरे, ताकि हम उस दिव्य मेधा के प्राप्त करने के योग्य बनें, जिससे सब प्रकार के ऐश्वर्य्य प्राप्त होते हैं ॥५॥