वांछित मन्त्र चुनें

अ॒वोर्वां॑ नू॒नम॑श्विना यु॒वाकु॑र्हु॒वे यद्वां॑ सु॒ते मा॑ध्वी वसू॒युः । आ वां॑ वहन्तु॒ स्थवि॑रासो॒ अश्वा॒: पिबा॑थो अ॒स्मे सुषु॑ता॒ मधू॑नि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avor vāṁ nūnam aśvinā yuvākur huve yad vāṁ sute mādhvī vasūyuḥ | ā vāṁ vahantu sthavirāso aśvāḥ pibātho asme suṣutā madhūni ||

पद पाठ

अ॒वोः । वा॒म् । नू॒नम् । अ॒श्वि॒ना॒ । यु॒वाकुः॑ । हु॒वे । यत् । वा॒म् । सु॒ते । मा॒ध्वी॒ इति॑ । व॒सु॒ऽयुः । आ । वा॒म् । व॒ह॒न्तु॒ । स्थवि॑रासः । अश्वाः॑ । पिबा॑थः । अ॒स्मे इति॑ । सुऽसु॑ता । मधू॑नि ॥ ७.६७.४

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:67» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे सेनापति तथा न्यायाधीश राजपुरुषो ! (नूनं) निश्चय करके (वां) तुम लोग (अवोः) हमारी रक्षा करनेवाले हो, (युवाकुः) तुम्हारी कामना करते हुए हम लोग (हुवे) तुम्हें आवाहन करते हैं, (यत्) क्योंकि (वां) तुम लोग (माध्वी) मधुविद्या में (सुते) कुशल हो, इसलिए (वां) आप लोग हमको (वसूयुः) धन से सम्पन्न करो (स्थविरासः) परिपक्क आयुवाले (अश्वाः) शीघ्र कार्य्यकर्त्ता आप लोग (अस्मे) हम लोगों को (आ, वहन्तु) भले प्रकार शुभ मार्गों में प्रेरें, ताकि (सुषुता, मधूनि) संस्कार किये हुए मधुर द्रव्यों को (पिबाथः) ग्रहण करके सुखी हों ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे प्रजाजनों ! तुम उन राजशासनकर्त्ताओं से इस प्रकार प्रार्थना करो कि हे राजपुरुषो ! आप हमारे नेता बनकर हमें उत्तम मार्गों पर चलायें, ताकि हम सब प्रकार की समृद्धि को प्राप्त हों, हममें कभी रागद्वेष न हो और हम सदा आपकी धर्मपूर्वक आज्ञा का पालन करें। परमात्मा आज्ञा देते हैं कि तुम दोनों मिलकर चलो, क्योंकि जब राजा तथा प्रजा में प्रेमभाव उत्पन्न होता है, तब वह मधुविद्या=रसायनविद्या को प्राप्त होते हैं अर्थात् दोनों का एक लक्ष्य हो जाने से संसार में कल्याण की वृद्धि होती है ॥४॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्विना) हे सेनाधीशौ राजपुरुषौ ! (नूनम्) निश्चयेन (वां) युवयोः (अवोः) रक्षित्रोः (वसूयुः) वसुकामः (युवाकुः) भवत्कामयमानोऽहं (हुवे) प्रार्थये (यत्) यस्मात् (वां) युवयोः (माध्वी) मधुविद्याः (अस्मे) अस्मान् (सुते, आ, वहन्तु) सुमार्गेषु प्रेरयन्तु यतो वयं (सुषुता) सुशिक्षिताः सन्तः (मधूनि) मधुद्रव्याणि (पिबाथः) भुञ्जानाः सुखिनो भवेम, अन्यच्च (स्थविरासः) ज्ञानवृद्धा भवन्तः (अश्वाः) शीघ्रकार्य्यकर्त्तारो भवन्तः, मामुपदिशन्तु ॥४॥