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ते स्या॑म देव वरुण॒ ते मि॑त्र सू॒रिभि॑: स॒ह । इष॒ स्व॑श्च धीमहि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te syāma deva varuṇa te mitra sūribhiḥ saha | iṣaṁ svaś ca dhīmahi ||

पद पाठ

ते । स्या॒म॒ । दे॒व॒ । व॒रु॒ण॒ । ते । मि॒त्र॒ । सू॒रिऽभिः॑ । स॒ह । इष॑म् । स्व१॒॑रिति॑ स्वः॑ । च॒ । धी॒म॒हि॒ ॥ ७.६६.९

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:66» मन्त्र:9 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:9» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:9


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वरुण) हे सब के पूजनीय (मित्र) परमप्रिय (देव) दिव्यस्वरूप भगवन् ! (ते) तुम्हारे उपासक (स्याम) ऐश्वर्य्ययुक्त हों, न केवल हम ऐश्वर्य्ययुक्त हों, किन्तु (ते) तुम्हारे (सूरिभिः) तेजस्वी विद्वानों के (सह) साथ (इषं) ऐश्वर्य्य (स्वश्च) और सुख को (धीमहि) धारण करें ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि यजमान लोगों ! तुम इस प्रकार प्रार्थना करो कि हे परमात्मदेव ! हम लोग सब प्रकार के ऐश्वर्य्य को प्राप्त हों, न केवल हम किन्तु ऋत्विगादि सब विद्वानों के साथ हम आनन्दलाभ करें ॥ इस मन्त्र में ऐश्वर्य्य तथा आनन्द इन दो पदार्थों की प्रार्थना है, परन्तु कई एक टीकाकारों ने इन उच्चभावों से भरे हुए अर्थों को छोड़कर “इष” के अर्थ अन्न “स्व” के अर्थ जल किये हैं, जिसका भाव यह है कि हे ईश्वर ! तू हमें अन्न जल दे। हमारे विचार में इन टीकाकारों ने वेद के उच्चभाव को नीचा कर दिया है। “स्व:” शब्द सर्वत्र आनन्द के अर्थों में आता है, उसके अर्थ यहाँ केवल जल करना वेद के विस्तृतभाव को संकुचित करना है, अस्तु, भाव यह है कि इस मन्त्र में परमात्मा से सब प्रकार के ऐश्वर्य्य और आध्यात्मिक आनन्द की प्रार्थना की गई है, जो सर्वथा सङ्गत है ॥९॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वरुण) हे सर्वभजनीय (देव) दिव्यशक्तिमन् परमात्मन् ! (मित्र) हे सर्वप्रिय ! (ते) तवोपासका वयम् (स्याम) ऐश्वर्ययुक्ता भवेम। न केवलं वयमेव ऐश्वर्ययुक्ता भवेम किन्तु (ते) तव (सूरिभिः) तेजस्विविद्वद्भिः सह (इषं) ऐश्वर्यं (स्वश्च) सुखञ्च (धीमहि) धारयाम ॥९॥