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स॒स्वश्चि॒द्धि समृ॑तिस्त्वे॒ष्ये॑षामपी॒च्ये॑न॒ सह॑सा॒ सह॑न्ते। यु॒ष्मद्भि॒या वृ॑षणो॒ रेज॑माना॒ दक्ष॑स्य चिन्महि॒ना मृ॒ळता॑ नः ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sasvaś cid dhi samṛtis tveṣy eṣām apīcyena sahasā sahante | yuṣmad bhiyā vṛṣaṇo rejamānā dakṣasya cin mahinā mṛḻatā naḥ ||

पद पाठ

स॒स्वरिति॑। चि॒त्। हि। सम्ऽऋ॑तिः। त्वे॒षी। ए॒षा॒म्। अ॒पी॒च्ये॑न। सह॑सा। सह॑न्ते। यु॒ष्मत्। भि॒या। वृ॒ष॒णः॒। रेज॑मानाः। दक्ष॑स्य। चि॒त्। म॒हि॒ना। मृ॒ळत॑। नः॒ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:60» मन्त्र:10 | अष्टक:5» अध्याय:5» वर्ग:2» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (हि) निश्चित (सस्वः) मध्य में चलते हुए हैं (चित्) और (एषाम्) इनकी (त्वेषी) प्रकाशमान (समृतिः) उत्तम प्रकार सत्यक्रिया है (अपीच्येन) जिससे चलता है उस में हुए (सहसा) बल से (सहन्ते) सहते हैं उनके लिये और (युष्मत्) आप लोगों के समीप से (भिया) भय से (रेजमानाः) काँपते और चलते हुए (वृषणः) बलिष्ठ काँपते हुए जानेवाले होते हैं, वे आप लोग (दक्षस्य) बल के (महिना) महत्व से (चित्) भी (नः) हम लोगों को (मृळत) सुखयुक्त करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसकी सत्य बुद्धि, विद्या, नीति, सेना और प्रजा वर्त्तमान है, वही शत्रुओं को सहता हुआ सब को सुखयुक्त करता है, वह महिमा से आनन्दित होता है ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

ये हि सस्वश्चिदेषां त्वेषी समृतिरस्त्यपीच्येन सहसा सहन्ते तेभ्यो युष्मद्भिया रेजमाना वृषणो रेजमाना भवन्ति ते यूयं दक्षस्य महिना चिन्नो मृळत ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सस्वः) अन्तश्चरन्तः (चित्) अपि (हि) (समृतिः) सम्यक् सत्यक्रियावान् (त्वेषी) प्रकाशमाना (एषाम्) (अपीच्येन) येनायमञ्चति तत्र भवेन (सहसा) बलेन (सहन्ते) (युष्मत्) युष्माकं सकाशात् (भिया) भयेन (वृषणः) बलिष्ठाः (रेजमानाः) कम्पमाना गच्छन्तः (दक्षस्य) बलस्य (चित्) अपि (महिना) महत्त्वेन (मृळत) सुखयत। अत्र संहितायामिति दीर्घः (नः) अस्मान् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यस्य सत्या प्रज्ञा विद्या नीतिः सेना प्रजाश्च वर्तते स एव शत्रून् सहमानः सर्वान् सुखयति स महिम्नानन्दितो भवति ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्याच्याजवळ सत्य बुद्धी, विद्या, नीती सेना व प्रजा विद्यमान असते तोच शत्रूंना सहन करून सर्वांना सुखी करतो त्याच्या महानतेमुळेच तो आनंदित होतो. ॥ १० ॥