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स॒स्वश्चि॒द्धि त॒न्वः१॒॑ शुम्भ॑माना॒ आ हं॒सासो॒ नील॑पृष्ठा अपप्तन्। विश्वं॒ शर्धो॑ अ॒भितो॑ मा॒ नि षे॑द॒ नरो॒ न र॒ण्वाः सव॑ने॒ मद॑न्तः ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sasvaś cid dhi tanvaḥ śumbhamānā ā haṁsāso nīlapṛṣṭhā apaptan | viśvaṁ śardho abhito mā ni ṣeda naro na raṇvāḥ savane madantaḥ ||

पद पाठ

स॒स्वरिति॑। चि॒त्। हि। त॒न्वः॑। शुम्भ॑मानाः। आ। हं॒सासः॑। नील॑ऽपृष्ठाः। अ॒प॒प्त॒न्। विश्व॑म्। शर्धः॑। अ॒भितः॑। मा॒। नि। से॒द॒। नरः॑। न। र॒ण्वाः। सव॑ने। मद॑न्तः ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:59» मन्त्र:7 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:30» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य किसके सदृश किसको जानें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! जैसे (शुम्भमानाः) शोभते हुए (हि) ही (हंसासः) हंसों के समान गमन करनेवाले (नीलपृष्ठाः) शुद्ध कारण जिनके वे (सस्वः) छिपे हुए (चित्) निश्चित (तन्वः) विस्तारयुक्त प्राण देह आदि में (आ) सब ओर से (अपप्तन्) गिरते हैं, वैसे (सवने) ऐश्वर्य्य में (मदन्तः) आनन्द करते हुए (रण्वाः) सुन्दर (नरः) अग्रणी जनों के (न) समान (मा) मुझ को (अमितः) सब ओर से आप लोग (नि, सेद) बैठाइये और (विश्वम्) सम्पूर्ण (शर्धः) बल को प्राप्त कराइये ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हंस पक्षी शीघ्र चलते हैं, वैसे देह से प्राण निकलते हैं और जैसे उत्तम मनुष्य सब के प्रिय होते हैं, वैसे ही विद्वान् जन सब के प्रिय होते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किंवत् किं जानीयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यथा शुम्भमाना हि हंसासो नीलपृष्ठाः सस्वश्चित्तन्वः प्राणा देहादिष्वापप्तन् तथा सवने मदन्तो रण्वा नरो न मामभितो यूयं नि षेद विश्वं शर्धः प्रापयत ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सस्वः) अन्तर्हिताः (चित्) अपि (हि) यतः (तन्वः) विस्तीर्णाः (शुम्भमानाः) शोभायुक्ताः (आ) (हंसासः) हंसा इव गमनकर्तारः (नीलपृष्ठाः) नीलं शुद्धं पृष्ठमन्तावयवं कारणं येषां ते (अपप्तन्) पतन्ति (विश्वम्) अखिलम् (शर्धः) बलम् (अभितः) सर्वतः (मा) माम् (नि, सेद) निषादयत (नरः) नायकाः (न) इव (रण्वाः) रमणीयाः (सवने) ऐश्वर्ये (मदन्तः) आनन्दन्तः ॥७॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा हंसा पक्षिणस्सद्यो गच्छन्ति तथा देहात्प्राणा निर्गच्छन्ति यथा रमणीया नरा सर्वेषां हृद्या भवन्ति तथैव विद्वांसः सर्वेषां प्रिया जायन्ते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे हंसपक्षी शीघ्र उडतात तसे देहातून प्राण जातात. जशी उत्तम माणसे सर्वांना प्रिय असतात तसेच विद्वान लोक सर्वांचे प्रिय असतात. ॥ ७ ॥