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कृ॒ते चि॒दत्र॑ म॒रुतो॑ रणन्तानव॒द्यासः॒ शुच॑यः पाव॒काः। प्र णो॑ऽवत सुम॒तिभि॑र्यजत्राः॒ प्र वाजे॑भिस्तिरत पु॒ष्यसे॑ नः ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kṛte cid atra maruto raṇantānavadyāsaḥ śucayaḥ pāvakāḥ | pra ṇo vata sumatibhir yajatrāḥ pra vājebhis tirata puṣyase naḥ ||

पद पाठ

कृ॒ते। चि॒त्। अत्र॑। म॒रुतः॑। र॒ण॒न्त॒। अ॒न॒व॒द्यासः॑। शुच॑यः। पा॒व॒काः। प्र। नः॒। अ॒व॒त॒। सु॒म॒तिऽभिः॑। य॒ज॒त्राः॒। प्र। वाजे॑भिः। ति॒र॒त॒। पु॒ष्यसे॑। नः॒ ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:57» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:27» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन कैसे होकर क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् जनो ! जैसे (अनवद्यासः) नहीं निन्दा करने योग्य और धर्म्माचरण से युक्त (शुचयः) पवित्र और (पावकाः) पवित्र करनेवाले (मरुतः) मनुष्य (चित्) भी (कृते) उत्तम कर्म्म में (अत्र) इस संसार में (रणन्त) रमें, वैसे (यजत्राः) मिलनेवाले हुए आप लोग (सुमतिभिः) उत्तम बुद्धिवाले मनुष्यों और (वाजेभिः) अन्न आदिकों के साथ (नः) हम लोगों की (प्र, अवत) रक्षा कीजिये और (नः) हम लोगों को (पुष्यसे) पुष्टि के लिये (प्र, तिरत) निष्पन्न कीजिये ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो यथार्थवक्ता, धार्मिक, पवित्र, विद्वान् होके सब सबकी रक्षा करते हैं, वे सब को पुष्ट और सुखी कर सकते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः कीदृशा भूत्वा किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यथाऽनवद्यासः शुचयः पावकाः मरुतश्चित्कृतेऽत्र रणन्त तथा यजत्रास्सन्तो यूयं सुमतिभिर्वाजेभिस्सह नः प्रावत नः पुष्यसे प्र तिरत ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कृते) (चित्) अपि (अत्र) अस्मिन् संसारे (मरुतः) मनुष्याः (रणन्त) रमध्वम् (अनवद्यासः) अनिन्द्याः धर्माचाराः (शुचयः) पवित्राः (पावकाः) पवित्रकराः (प्र) (नः) अस्मान् (अवत) रक्षत (सुमतिभिः) उत्तमप्रज्ञैर्मनुष्यैः (यजत्राः) सङ्गन्तारः (प्र) (वाजेभिः) अन्नादिभिः (तिरत) निष्पादयत (पुष्यसे) पुष्टये (नः) अस्मान् ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। य आप्तवद्धार्मिकाः पवित्रा विद्वांसो भूत्वा सर्वे सर्वान् रक्षन्ति ते सर्वान् पुष्टान् सुखिनः कर्तुं शक्नुवन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे यथार्थ वक्ते, धार्मिक, पवित्र, विद्वान होऊन, सर्वजण सर्वांचे रक्षण करतात ते सर्वांना पुष्ट करून सुखी व पुष्ट करू शकतात. ॥ ५ ॥