सने॑म्य॒स्मद्यु॒योत॑ दि॒द्युं मा वो॑ दुर्म॒तिरि॒ह प्रण॑ङ्नः ॥९॥
sanemy asmad yuyota didyum mā vo durmatir iha praṇaṅ naḥ ||
सने॑मि। अ॒स्मत्। यु॒योत॑। दि॒द्युम्। मा। वः॒। दुः॒ऽम॒तिः। इ॒ह। प्रण॑क्। नः॒ ॥९॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥
हे विद्वांसः ! अस्मत्सनेमि दिद्युं युयोत यत इह वो युष्मान् नोऽस्माँश्च दुर्मतिर्मा प्रणक् ॥९॥