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यामं॒ येष्ठाः॑ शु॒भा शोभि॑ष्ठाः श्रि॒या संमि॑श्ला॒ ओजो॑भिरु॒ग्राः ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yāmaṁ yeṣṭhāḥ śubhā śobhiṣṭhāḥ śriyā sammiślā ojobhir ugrāḥ ||

पद पाठ

याम॑म्। येष्ठाः॑। शु॒भा। शोभि॑ष्ठाः। श्रि॒या। सम्ऽमि॑श्लाः। ओजः॑ऽभिः। उ॒ग्राः ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:6 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:6 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे स्त्री कैसी हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थो ! जो (शुभा) शोभन (शोभिष्ठाः) अतीव शोभायुक्त (श्रिया) धन से (संमिश्लाः) अच्छे प्रकार मित्रता के साथ मिली हुई (येष्ठाः) अतीव प्राप्त होने और (ओजोभिः) पराक्रम आदि से (उग्राः) कठिन गुण-कर्म-स्वभाववाली होती हुई (यामम्) प्राप्त होनेवाले व्यवहार को पहुँचती हैं, वे गृहस्थों को मान करने योग्य हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे गृहस्थो ! जो शालाधर धन और अन्नादि पदार्थों से युक्त शोभायमान प्राप्त होने योग्य सुख को देते हैं, उनको पतिव्रता स्त्रियों के समान सुन्दर शोभायुक्त निरन्तर करो ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ता नार्यः कीदृश्यो भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे गृहस्था ! याः शुभा शोभिष्ठाः श्रिया संमिश्ला येष्ठा ओजोभिरुग्राः सत्यो यामं प्रापणीयं यान्ति ताः गृहस्थैस्सम्माननीयाः ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यामम्) प्रहरं प्राप्तव्यं वा (येष्ठाः) अतिशयेन यातारः (शुभा) शोभनेन (शोभिष्ठाः) अतिशयेन शोभायुक्ताः (श्रिया) धनेन (संमिश्लाः) सम्यक् मित्रत्वेन मिश्रिताः (ओजोभिः) पराक्रमादिभिः (उग्राः) कठिनगुणकर्मस्वभावाः ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे गृहस्था ! याः शाला श्रियान्नादिभिर्युक्ताः शोभमानाः प्रापणीयं सुखं प्रयच्छन्ति ताः पतिव्रता स्त्रिय इव सुशोभनीयाः सततं कुरुत ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे गृहस्थांनो! जी घरे, धन व अश्व इत्यादी निरनिराळ्या पदार्थांनी युक्त असून सुशोभित असतात व सुख देतात त्यांना पतिव्रता स्त्रियांप्रमाणे निरंतर सुंदर व शोभिवंत बनवा. ॥ ६ ॥