ए॒तानि॒ धीरो॑ नि॒ण्या चि॑केत॒ पृश्नि॒र्यदूधो॑ म॒ही ज॒भार॑ ॥४॥
etāni dhīro niṇyā ciketa pṛśnir yad ūdho mahī jabhāra ||
ए॒तानि॑। धीरः॑। नि॒ण्या। चि॒के॒त॒। पृश्निः॑। यत्। ऊधः॑। म॒ही। ज॒भार॑ ॥४॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥
यो धीरः यदूधः पृश्निर्महो जभार तद्वदेतानि निण्या चिकेत जानीयात्स गृहभारं धर्तुं शक्नुयात् ॥४॥