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ए॒तानि॒ धीरो॑ नि॒ण्या चि॑केत॒ पृश्नि॒र्यदूधो॑ म॒ही ज॒भार॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etāni dhīro niṇyā ciketa pṛśnir yad ūdho mahī jabhāra ||

पद पाठ

ए॒तानि॑। धीरः॑। नि॒ण्या। चि॒के॒त॒। पृश्निः॑। यत्। ऊधः॑। म॒ही। ज॒भार॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (धीरः) बुद्धिमान् विद्वान् (यत्) जैसे (ऊधः) दुग्धधारायुक्त और (पृश्निः) अन्तरिक्ष के (मही) तथा पृथिवी (जभार) धारण करती है, वैसे क्षोभ रहित निष्कम्प गम्भीर (एतानि) इन (निण्या) पदार्थों को जो (चिकेत) जाने, वह घर के भार को धर सके ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जैसे पृथिवी और सूर्य्य सब गृहों को धारण करते हैं, वैसे जो विद्वान् जन निर्णीत सिद्धान्तों को जानते हैं, वे सर्वत्र सत्कार करने योग्य होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

यो धीरः यदूधः पृश्निर्महो जभार तद्वदेतानि निण्या चिकेत जानीयात्स गृहभारं धर्तुं शक्नुयात् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एतानि) (धीरः) मेधावी विद्वान् (निण्या) निश्चितानि (चिकेत) (पृश्निः) अन्तरिक्षमिव गम्भीराशयोऽक्षोभः (यत्) (ऊधः) दुग्धाधारम् (मही) पृथिवी (जभार) बिभर्ति ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा पृथिवी सूर्यश्च सर्वान् गृहान् बिभर्ति तथैव ये विद्वांसो निर्णीतान् सिद्धान्ताञ्जानन्ति ते सर्वत्र सत्कर्तव्या भवन्ति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे पृथ्वी व सूर्य सर्व घरे धारण करतात तसे जे विद्वान लोक निश्चित सिद्धांत जाणतात ते सर्वत्र सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ४ ॥