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भूरि॑ चक्र मरुतः॒ पित्र्या॑ण्यु॒क्थानि॒ या वः॑ श॒स्यन्ते॑ पु॒रा चि॑त्। म॒रुद्भि॑रु॒ग्रः पृत॑नासु॒ साळ्हा॑ म॒रुद्भि॒रित्सनि॑ता॒ वाज॒मर्वा॑ ॥२३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhūri cakra marutaḥ pitryāṇy ukthāni yā vaḥ śasyante purā cit | marudbhir ugraḥ pṛtanāsu sāḻhā marudbhir it sanitā vājam arvā ||

पद पाठ

भूरि॑। च॒क्र॒। म॒रु॒तः॒। पित्र्या॑णि। उ॒क्थानि॑। या। वः॒। श॒स्यन्ते॑। पु॒रा। चि॒त्। म॒रुत्ऽभिः॑। उग्रः। पृत॑नासु। साळ्हा॑। म॒रुत्ऽभिः॑। इत्। सनि॑ता। वाज॑म्। अर्वा॑ ॥२३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:23 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:23


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) पवन के सदृश वर्त्तमान मनुष्यो ! (वः) आप लोगों के (या) जो (उक्थानि) प्रशंसा करने योग्य कर्म्म और (पित्र्याणि) पितरों के सेवन आदि (शस्यन्ते) स्तुति किये जाते हैं (पुरा) पहिले उनको (मरुद्भिः) उत्तम मनुष्यों के साथ (पृतनासु) सेनाओं में (उग्रः) तेजस्वी (साळ्हा) सहनेवाला पुरुष और (मरुद्भिः) मनुष्यों के साथ (सनिता) विभाग करनेवाला (अर्वा) वेगयुक्त घोड़ा जैसे वैसे (वाजम्) विज्ञान वा वेग को प्राप्त हुआ (चित्) भी जीतता है, उनको आप लोग (भूरि) बहुत (चक्र) करते हैं ॥२३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य प्रशंसनीय कर्मों को करते हैं, उनका सदा ही विजय होता है ॥२३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते मनुष्याः किं किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! वो योक्थानि पित्र्याणि शस्यन्ते पुरा तानि मरुद्भिस्सह पृतनासूग्रः साळ्हा मरुद्भिस्सह सनिताऽर्वेव वाजं प्राप्तश्चिदेव विजयते तानि यूयं भूरि चक्र ॥२३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भूरि) बहु (चक्र) कुर्वन्ति (मरुतः) वायुवद्वर्तमाना मनुष्याः (पित्र्याणि) पितॄणां सेवनादीनि (उक्थानि) प्रशंसनीयानि कर्माणि (या) यानि (वः) युष्माकम् (शस्यन्ते) स्तूयन्ते (पुरा) वाक् (चित्) अपि (मरुद्भिः) उत्तमैर्मनुष्यैस्सह (उग्रः) तेजस्वी (पृतनासु) सेनासु (साळ्हा) सहनकर्ता (मरुद्भिः) मनुष्यैः (इत्) एव (सनिता) विभाजकः (वाजम्) विज्ञानं वेगं वा (अर्वा) वेगवानश्व इव ॥२३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः प्रशस्तानि कर्माणि कुर्वन्ति तेषां सदैव विजयो जायते ॥२३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे प्रशंसनीय कर्म करतात त्यांचा सदैव विजय होतो. ॥ २३ ॥