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अत्या॑सो॒ न ये म॒रुतः॒ स्वञ्चो॑ यक्ष॒दृशो॒ न शु॒भय॑न्त॒ मर्याः॑। ते ह॑र्म्ये॒ष्ठाः शिश॑वो॒ न शु॒भ्रा व॒त्सासो॒ न प्र॑क्री॒ळिनः॑ पयो॒धाः ॥१६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

atyāso na ye marutaḥ svañco yakṣadṛśo na śubhayanta maryāḥ | te harmyeṣṭhāḥ śiśavo na śubhrā vatsāso na prakrīḻinaḥ payodhāḥ ||

पद पाठ

अत्या॑सः। न। ये। म॒रुतः॑। सु॒ऽअञ्चः॑। य॒क्ष॒ऽदृशः॑। न। शु॒भय॑न्त। मर्याः॑। ते। ह॒र्म्ये॒ऽस्थाः। शिश॑वः। न। शु॒भ्राः। व॒त्सासः॑। न। प्र॒ऽकी॒ळिनः॑। प॒यः॒ऽधाः ॥१६॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:16 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:16


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे राजजन कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ये) जो (मर्याः) मरणधर्मा मनुष्य (अत्यासः) मार्ग को व्याप्त होते हुओं के (न) समान (स्वञ्चः) सुन्दरता से जाने (पयोधाः) वा जलों को धारण करनेवाले (मरुतः) पवनों के समान निरन्तर चालवाले बलिष्ठ (यक्षदृशः) जो पूजन करने योग्यों को देखते हैं उनके (न) समान (हर्म्येष्ठाः) अटारियों पर स्थिर होनेवाले (शिशवः) बालकों के (न) समान (शुभ्राः) शुद्ध सुन्दर (वत्सासः) शीघ्र उत्पन्न हुए बछड़ों के (न) समान (प्रक्रीळिनः) अच्छे प्रकार खेलवाले होते हुए (शुभयन्त) उत्तम के समान आचरण करते हैं (ते) वे कृतकार्य होते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो शूरवीर घोड़े के समान वेगवाले, अच्छी दृष्टिवाले के समान देखनेवाले, बालकों के समान सीधे स्वभाववाले, बछड़ों के समान खेल करनेवाले, पवनों के समान पदार्थों के धारण करनेवाले राजा आदि वीर जन हैं, वे ही विजय और प्रतिष्ठा को निरन्तर पाते हैं ॥१६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते राजजनाः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्याः ! ये मर्या अत्यासो न स्वञ्चः पयोधा मरुत इव गतिमन्तो बलिष्ठा यक्षदृशो न हर्म्येष्ठाः शिशवो न शुभ्रा वत्सासो न प्रक्रीळिनः सन्तः शुभयन्त ते कृतकार्या भवन्ति ॥१६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अत्यासः) येऽतन्त्यध्वानं व्याप्नुवन्ति ते (न) इव (ये) (मरुतः) वायव इव बलिष्ठा मनुष्याः (स्वञ्चः) ये सुष्ठ्वञ्चन्ति गच्छन्ति ते (यक्षदृशः) ये यक्षान् पूजनीयान् पश्यन्ति ते (न) इव (शुभयन्त) शुभ इवाचरन्ति (मर्याः) मनुष्याः (ते) (हर्म्येष्ठाः) ये हर्म्ये तिष्ठन्ति ते (शिशवः) बालकाः (न) इव (शुभ्राः) शुद्धाः (वत्सासः) सद्योजाता वत्साः (न) इव (प्रक्रीळिनः) प्रकृष्टा क्रीळा विद्यते येषां ते (पयोधाः) ये पयांसि स्वगतानि दधति ते ॥१६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये शूरवीरा अश्ववद्वेगवन्तः कल्याणदृष्टिवत्समीक्षकाः शिशुवत्सरलस्वभावा वत्सवत्क्रीडाकर्तारः वायुवत्सामग्रीधरा राजादयो वीरास्सन्ति त एव विजयप्रतिष्ठे सततं लभन्ते ॥१६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे शूरवीर अश्वाप्रमाणे वेगवान, कल्याणदृष्टी ठेवणारे, समीक्षक, शिशूप्रमाणे सरळ स्वभावाचे, वासराप्रमाणे क्रीडा करणारे, वायूप्रमाणे पदार्थ धारण करणारे असे राजे वगैरे वीरलोक असतात तेच निरंतर विजय व प्रतिष्ठा प्राप्त करतात. ॥ १६ ॥