सस्तु॑ मा॒ता सस्तु॑ पि॒ता सस्तु॒ श्वा सस्तु॑ वि॒श्पतिः॑। स॒सन्तु॒ सर्वे॑ ज्ञा॒तयः॒ सस्त्व॒यम॒भितो॒ जनः॑ ॥५॥
sastu mātā sastu pitā sastu śvā sastu viśpatiḥ | sasantu sarve jñātayaḥ sastv ayam abhito janaḥ ||
सस्तु॑। मा॒ता। सस्तु॑। पि॒ता। सस्तु॑। श्वा। सस्तु॑। वि॒श्पतिः॑। स॒सन्तु॑। सर्वे॑। ज्ञा॒तयः॑। सस्तु॑। अ॒यम्। अ॒भितः॑। जनः॑ ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर गृहस्थ घर में क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्गृहस्थाः गृहे किं किं कुर्युरित्याह ॥
ये मनुष्या यथा मद्गृहे मम माताऽभितः सस्तु पिता सस्तु श्वा सस्तु विश्पतिस्सस्तु सर्वे ज्ञातयोऽभितः ससन्त्वयं जनः सस्तु तथा युष्माकं गृहेऽपि ससन्तु ॥५॥