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देवता: इन्द्र: ऋषि: वसिष्ठः छन्द: बृहती स्वर: मध्यमः

स्ते॒नं रा॑य सारमेय॒ तस्क॑रं वा पुनःसर। स्तो॒तॄनिन्द्र॑स्य रायसि॒ किम॒स्मान्दु॑च्छुनायसे॒ नि षु स्व॑प ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

stenaṁ rāya sārameya taskaraṁ vā punaḥsara | stotṝn indrasya rāyasi kim asmān ducchunāyase ni ṣu svapa ||

पद पाठ

स्ते॒नम्। रा॒य॒। सा॒र॒मे॒य॒। तस्क॑रम्। वा॒। पु॒नः॒ऽस॒र॒। स्तो॒तॄन्। इन्द्र॑स्य। रा॒य॒सि॒। किम्। अ॒स्मान्। दु॒च्छु॒न॒ऽय॒से॒। नि। सु। स्व॒प॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:55» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर गृहस्थों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (राय) धनियों में सज्जन (सारमेय) सार वस्तुओं से मान करने योग्य आप (इन्द्रस्य) परम ऐश्वर्य्य के (स्तेनम्) चोर (वा) (तस्करम्) डाँकू आदि चोर को (पुनःसर) फिर फिर दण्ड देने के लिये प्राप्त होओ जो आप (स्तोतॄन्) स्तुति करनेवालों को (रायसि) कहलाते हो (अस्मान्) हम लोगों को (किम्) क्या (दुच्छुनायसे) दुष्टों में, वैसे वैसे आचरण से प्राप्त होंगे सो आप उत्तम स्थान में (नि, सु, स्वप) निरन्तर अच्छे प्रकार सोओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थों को चाहिये कि चोरों की रुकावट और श्रेष्ठों का सत्कार कर के कभी कुत्ते के समान न आचरण करें और सदैव शुद्ध वायु, जल और अवकाश में सोवें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्गृहस्थैः किं कर्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे राय सारमेय ! त्वमिन्द्रस्य स्तेनं वा तस्करं वा पुनस्सर यस्त्वं स्तोतॄन् रायसि सोऽस्मान् किं दुच्छुनायसे स त्वमुत्तमे स्थाने नि सु स्वप ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (स्तेनम्) चोरम् (राय) रासु धनेषु साधो (सारमेय) (तस्करम्) दस्य्वादिकम् (वा) (पुनःसर) पुनःपुनः दण्डदानाय प्राप्नुहि (स्तोतॄन्) स्तावकान् (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यस्य (रायसि) शब्दयसि (किम्) (अस्मान्) (दुच्छुनायसे) दुष्टेष्वेवाचरसि (नि) नितराम् (सु) (स्वप) ॥३॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थैः स्तेनानां निग्रहं श्रेष्ठानां सत्करणं कृत्वा कदाचिद् श्ववन्नाचरणीयम् सदैव शुद्धवायूदकावकाशे शयितव्यम् ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थांनी चोरांना रोखावे व श्रेष्ठांचा सत्कार करावा. कधी कुत्र्याप्रमाणे आचरण करू नये. सदैव शुद्ध वायू व जल, अवकाश मिळाल्यावर झोपावे. ॥ ३ ॥