अ॒मी॒व॒हा वा॑स्तोष्पते॒ विश्वा॑ रू॒पाण्या॑वि॒शन्। सखा॑ सु॒शेव॑ एधि नः ॥१॥
amīvahā vāstoṣ pate viśvā rūpāṇy āviśan | sakhā suśeva edhi naḥ ||
अ॒मी॒व॒ऽहा। वा॒स्तोः॒। प॒ते॒। विश्वा॑। रू॒पाणि॑। आ॒ऽवि॒शन्। सखा॑। सु॒ऽशेवः॑। ए॒धि॒। नः॒ ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ ऋचावाले पचपनवें सूक्त का प्रारम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में घर का स्वामी क्या करे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ गृहपतिः किं कुर्यादित्याह ॥
हे वास्तोष्पते ! यत्र गृहे विश्वा रूपाण्याविशन् तत्र नोऽमीवहा सखा सुशेवः सन्नेधि ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात गृहस्थाचे काम व गुण यांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.