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वास्तो॑ष्पते श॒ग्मया॑ सं॒सदा॑ ते सक्षी॒महि॑ र॒ण्वया॑ गातु॒मत्या॑। पा॒हि क्षेम॑ उ॒त योगे॒ वरं॑ नो यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāstoṣ pate śagmayā saṁsadā te sakṣīmahi raṇvayā gātumatyā | pāhi kṣema uta yoge varaṁ no yūyam pāta svastibhiḥ sadā naḥ ||

पद पाठ

वास्तोः॑। प॒ते॒। श॒ग्मया॑। स॒म्ऽसदा॑। ते॒। स॒क्षी॒महि॑। र॒ण्वया॑। गा॒तु॒ऽमत्या॑। पा॒हि। क्षेमे॑। उ॒त। योगे॑। वर॑म्। नः॒। यू॒यम्। पा॒त॒। स्व॒स्तिऽभिः॑। सदा॑। नः॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:54» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे घर में रहनेवाले क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वास्तोष्पते) घर की रक्षा करनेवाले जिन (ते) आप के (शग्मया) सुख रूप (संसदा) जिस में अच्छे प्रकार स्थिर हों उस (रण्वया) रमणीय (गातुमत्या) प्रशंसित वाणी वा भूमि से युक्त सभा के साथ (सक्षीमहि) सम्बन्ध करें वह आप (योगे) न ग्रहण किये हुए पदार्थ के ग्रहण लक्षण विषय में (उत) और (क्षेमे) रक्षा में (नः) हम लोगों की (वरम्) उत्तमता जैसे हो, वैसे (पाहि) रक्षा करो (यूयम्) तुम (स्वस्तिभिः) सुखादिकों से (नः) हम लोगों की (सदा) सदैव (पातः) रक्षा करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो गृहस्थ सज्जनों का सत्कार कर उनकी रक्षा करते हैं, वे उन के योग-क्षेम की उन्नति कर निरन्तर उनकी पालना करते हैं ॥३॥ इस सूक्त में वास्तोष्पति के गुण और कृत्यों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चौपनवाँ सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते गृहस्थः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे वास्तोष्पते ! यस्य ते तव शग्मया संसदा रण्वया गातुमत्या सह सक्षीमहि स त्वं योग उत क्षेमे नोऽस्मान् वरं पाहि यूयं स्वस्तिभिर्नस्सदा पात ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वास्तोः) गृहस्य (पते) पालक (शग्मया) सुखरूपया (संसदा) सम्यक् सीदन्ति यस्यां तया (ते) तव (सक्षीमहि) सम्बध्नीयाम (रण्वया) रमणीयया (गातुमत्या) प्रशस्तवाग्भूमियुक्तया (पाहि) (क्षेमे) रक्षणे (उत) (योगे) अनुपात्तस्योपात्तलक्षणे (वरम्) (नः) अस्मान् (यूयम्) (पात) (स्वस्तिभिः) सुखादिभिः (सदा) (नः) ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये गृहस्थाः सज्जनान् सत्कृत्य रक्षन्ति ते तेषां योगक्षेमावुन्नीय सततं तान् पालयन्तीति ॥३॥ अत्र वास्तोष्पतिगुणकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुष्पञ्चाशत्तमं सूक्तमेकविंशतितमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक सज्जनांचा सत्कार करून त्यांचे रक्षण करतात ते त्यांचा योगक्षेम चालवून निरंतर त्यांचे पालन करतात. ॥ ३ ॥