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आ॒दि॒त्यासो॒ अदि॑तयः स्याम॒ पूर्दे॑व॒त्रा व॑सवो मर्त्य॒त्रा। सने॑म मित्रावरुणा॒ सन॑न्तो॒ भवे॑म द्यावापृथिवी॒ भव॑न्तः ॥१॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ādityāso aditayaḥ syāma pūr devatrā vasavo martyatrā | sanema mitrāvaruṇā sananto bhavema dyāvāpṛthivī bhavantaḥ ||

पद पाठ

आ॒दि॒त्यासः॑। अदि॑तयः। स्या॒म॒। पूः। दे॒व॒ऽत्रा। व॒स॒वः॒। म॒र्त्य॒ऽत्रा। सने॑म। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। सन॑न्तः। भवे॑म। द्या॒वा॒पृ॒थि॒वी॒। भव॑न्तः ॥१॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:52» मन्त्र:1 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:19» मन्त्र:1 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बावनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में फिर मनुष्य कैसे हों, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (देवत्रा) देवों में वर्त्तमान (आदित्यासः) महीने के समान (अदितयः) अखण्डित (स्याम) हों जैसे (मर्त्यत्रा) मनुष्यों में उपदेशक (वसवः) निवास करते हुए (सनेम) विभाग करें (पूः) नगरी के समान (मित्रावरुणा) प्राण और उदान दोनों (सनन्तः) सेवन करते हुए (द्यावापृथिवी) सूर्य और भूमि के समान (भवन्तः) आप (भवेम) हों, वैसे आप भी हों ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! तुम आप्त विद्वान् के समान वर्त कर धार्मिक विद्वानों में निरन्तर बस कर सत्य और असत्य का विभाग कर सूर्य और भूमि के समान परोपकार कर विश्व के सुख के लिये प्राण और उदान के सदृश सब की उन्नति के लिये होओ ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कीदृशा भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा वयं देवत्राऽऽदित्यासोऽदितयः स्याम यथा मर्त्यत्रा वसवस्सन्तस्सनेम पूरिव मित्रावरुणा सनन्तो द्यावापृथिवी इव भवन्तो भवेम तथा यूयमपि भवत ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्यासः) मासा इव (अदितयः) अखण्डिताः (स्याम) भवेम (पूः) नगरीव (देवत्रा) देवेषु वर्तमानाः (वसवः) निवसन्तः (मर्त्यत्रा) मर्त्येषूपदेशकाः (सनेम) विभजेम (मित्रावरुणा) प्राणोदानौ (सनन्तः) सेवमानाः (भवेम) (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी इव (भवन्तः) ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यूयं आप्तविद्वद्वद्वर्तित्वा धार्मिकेषु विद्वत्सु न्युष्य सत्यासत्ये विभज्य सूर्यभूमीवत् परोपकारं कृत्वा विश्वसुखाय प्राणोदानवत् सर्वेषामुन्नतये भवतः ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विश्वेदेवाच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो, तुम्ही विद्वानाप्रमाणे वागून धार्मिक विद्वानांमध्ये सतत वास करून सत्य-असत्याचा भेद करा. सूर्य व भूमीप्रमाणे परोपकार करून विश्वाच्या सुखासाठी प्राण, अपानाप्रमाणे सर्वांची उन्नती करा. ॥ १ ॥