आ॒दि॒त्याना॒मव॑सा॒ नूत॑नेन सक्षी॒महि॒ शर्म॑णा॒ शंत॑मेन। अ॒ना॒गा॒स्त्वे अ॑दिति॒त्वे तु॒रास॑ इ॒मं य॒ज्ञं द॑धतु॒ श्रोष॑माणाः ॥१॥
ādityānām avasā nūtanena sakṣīmahi śarmaṇā śaṁtamena | anāgāstve adititve turāsa imaṁ yajñaṁ dadhatu śroṣamāṇāḥ ||
आ॒दि॒त्याना॑म्। अव॑सा। नूत॑नेन। स॒क्षी॒महि॑। शर्म॑णा। शम्ऽत॑मेन। अ॒ना॒गाःऽत्वे। अ॒दि॒ति॒ऽत्वे। तु॒रासः॑। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। द॒ध॒तु॒। श्रोष॑माणाः ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब तीन ऋचावाले इक्यावनवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में किनके सङ्ग से क्या होता है, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अत्र केषां सङ्गेन किं भवतीत्याह ॥
ये तुरासः श्रोषमाणा अनागास्त्वे अदितित्व इमं यज्ञं दधतु तेषामादित्यानामवसा शन्तमेन नूतनेन शर्मणा सह वयं सक्षीमहि ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात सूर्याप्रमाणे विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वसूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.