स हि क्षये॑ण॒ क्षम्य॑स्य॒ जन्म॑नः॒ साम्रा॑ज्येन दि॒व्यस्य॒ चेत॑ति। अव॒न्नव॑न्ती॒रुप॑ नो॒ दुर॑श्चरानमी॒वो रु॑द्र॒ जासु॑ नो भव ॥२॥
sa hi kṣayeṇa kṣamyasya janmanaḥ sāmrājyena divyasya cetati | avann avantīr upa no duraś carānamīvo rudra jāsu no bhava ||
सः। हि। क्षये॑ण। क्षम्य॑स्य। जन्म॑नः। साम्ऽरा॑ज्येन। दि॒व्यस्य॑। चेत॑ति। अव॑न्। अव॑न्तीः। उप॑। नः॒। दुरः॑। च॒र॒। अ॒न॒मी॒वः। रु॒द्र॒। जासु॑। नः॒। भ॒व॒ ॥२॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वे राजा आदि जन कैसे हुए क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्ते राजादयः कीदृशास्सन्तः किं कुर्युरित्याह ॥
हे रुद्र ! यो भवान्नोऽवन्तीरवन् दुर उप चरानमीवस्सन् हि क्षयेण क्षम्यस्य दिव्यस्य जन्मनः साम्राज्येनास्मांश्चेतति स त्वं नो जासु रक्षको भव ॥२॥